________________ 4 द्युत दृष्टांत : : 61 अह तोरसि रज्जकए दाएणेगेण अट्ठसयवारे / जिणसु निरंतरमस्से एक्केवकं देमि तो रज्जं // 9 // भावार्थः-शाणामंत्रिए कुमारनो भाव जाणी लीधो ने राजाने जणावी दीg, राजाए पुत्रने बोलाव्यो ने का के-आ क्रमने स्विकार, ते ए छे के मारी साथे जूवटे रम ने एकेक दावे जीतता निरंतर एकसो आठवार मने जीती शके तो हुँ राज्य आपीश // 8-9 // जो मं जए जिणाइ मए समं पइदिणं जह क्कमसो / अट्ठसयं यंभाणं तुरियं पावेसि तो रज्ज // 10 // ___ भावार्थ:-जो मारी साथे हमेशां जूवटुं रमता क्रमे एकसोने आठ थांभलाने जीती लइश तो तरत ज समग्र राज्य समर्पिश (आपीश) // 10 // जइ एगवारमित्थ य खलहिज्जसि तो हविज्ज पुण जूयं / सुणिऊण जणयवयणं हट्ठो तह उज्जमी जाओ // 11 // ... भावार्थ:-जो एकवार पण जूवटामां हारीश तो ते पहेला जीतेल तमाम निष्फल जशे अने फरी पहेलेथी रमत शरु थशे, आवं पिताजी- वाक्य सांभली लोभी पुत्र ते शरते जूवटुं रमवा तैयार थयो // 11 //