________________ 146 : : नरभवदिटुंतोवनयमाला तो अण्णेसि सण-मिह जइ हवइज्ज चितिर पवत्तो। एवं वियक्कइत्ता अह पत्तो मोहपरतंतो // 17 / / . .. आगच्छइ जावया सो आकारिऊण परियणं निययं / ताव य ससहरबिंबं संजायं पडलसंछण्णं // 18 / / भावार्थ:-जेम चंद्रदर्शन -मने थयु तेम बीजा मारा कुटुंबीओने थाय तो ठीक ! एवा विचारमा पज्यो, छेवटे तर्क वितर्क करी मोहपरतंत्र थइ जेटलामां पोताना कुटुंबी बीजा काचबाओने चंद्रमंडलना दर्शन माटे बोलावीने उपर आवे छे एटलामां तो चंद्रमंडल शेवालनुं छिद्र पूराइ जवाथी सर्वथा अदृश्यज थइ गयु // 17-18 / / एवं मोहवसेण य सम्मत्तं पाविऊण निग्गमियं / संकाइदोसदुट्ठो णो अण्णेसि य दंसेइ // 19 // भावार्थ:-तेवी रीते प्राप्त थयेल सम्यग्दर्शनने संसारी जीव मोहना वशथी गुमावी दे छे, अने शंकाकाक्षां विगेरे दोषोथी लेपातो ते बीजाओने सम्यग्दर्शननी प्राप्ति करावी शकतो नथी // 19 / / जह कुम्मो अहपत्तो चंदं ठूण उड्ढमागम्म / तह सम्मत्तं हिच्चा निगोयनरइं गई जाइ // 20 //