________________ 28 : : नरभवदिटुंतोवनयमाला चरणोनुं दर्शन नज थयुं // 103 / / सुकयण्णयाए तेणं पुव्वुवयारं मणे सरंतेण / भणिओ संतुट्ठमणेण भद्द ! मग्गाहि वरमेगं // 104 / / भावार्थ -अत्यंत कृतज्ञ होवाने लीधे तेणे पूर्वोपकार- स्मरण करतां संतुष्ट मनथी ब्राह्मणने का केहे भद्र मारी पासेथी वरं (वरदान) मांगी ले / 104 / आउच्छिय नियभज्ज पच्छा मग्गामि नंपियं तीसे / इय भणिऊगं विप्पो गेहं गओ पुच्छिया साय // 105 / / भावार्थ -पोतानी स्त्रीने पूछीने तेणीने जे प्रिय हशे ते हुं पछी मांगोश, एम कही ते ब्राह्मण पोताने घरे गयो ने पोतानी स्त्रीने पूछयुं / / 105 / / अइनिउणबुद्धिजुत्ता अवि तुच्छमणा हवंति नारीओ / तो चितियमेईए बहुविहवो परवसो होही / / 106 / / भावार्थ:-बहुसूक्ष्मबुद्धिवाली होवा छतां पण स्त्रीओनुं मन विशाल होतुं नथी तेथीज़ रोणीए विचायु के घगो संपतिथी पुरेपुरा परतंत्र थशे / / 106 / / इक्किकमि गेंहमि पइदिवसं भोयणं तुमं मग्गं / दोणारदक्खिणं तह पज्जतं चक्किआणाए // 107 // भावार्थ:-दरेक घरे एकेक दिवस सोनामहोरनी दक्षिणासहित भोजन चक्रवतीनी आज्ञाथी मागी लेवं / / 107 // . . . .