________________ 98 : : नरभवदिळूतोवनयमाला माणसोना चरित्रो खरेखर धिक्कारने पात्र होय छे ? // 48 // विस्सरियमिणं नणं एयरस निमंतणं न तेण कयं / कल्ले दाही इइ चितिऊण तेणेव सह चलिओ / / 49 / / __भावार्थ:-निमंत्रण आपq भूली गयो हशे, आज नहि तो काले जरूर निमंत्रण एटले बोलावीने भोजन मने आपशे, एम विचारी मूलदेव ते कृपण ब्राह्मणनी साथे चाल्यो // 49 / एवं बीएवि दिणे न तेण संभाविओ मणागपि / तो पत्ते तइयदिणे तं अडवीमइच्छया दोवि // 50 // भावार्थः-बीजे दिवसे पण ते, ब्राह्मणे मूलदेवने थोडं भोजन आपीने थोडो पण सत्कार न कर्यो अने त्रीजे दिवसे ब्राह्मण तथा मूलदेव बन्ने अटवी उल्लंघी गया // 50 // पत्तो गामसमीवे आसासंपायणेण मम एसो। . सुट्टेवयारकारित्ति चितिरं मूलदेवेण // 51 // भावार्थ:-अने गामनी नजीकमां आवी पहोंच्या, आशा आपी महा अटवीमांथी पार उतारनार आ ब्राह्मण म्हारो महान् उपकारक छे ए प्रमाणे मूलदेवे विचार्यु // 51 // 1 चितिउं इत्यपि