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________________ 132 : : नरभवदिटुंतोवनयमाला तेमज आग्निक, पर्वत विगेरे ते दासीपुत्रोवडे करीने विशेष प्रकारे फेरवाता, तेमज गुरुनी भाल (खबर) नीचे रहेल पङखाना बीजा पुरुषोवडे करीने आक्रोश कराता, तेमज उघाडी तरवार लइ उभा रहेल 'जो तुं भूलीश तो अमो तने हणीशुं' ए प्रमाणे बकबाद करनारा पुरुषोवडे वारंवार तर्जना कराता लघुहस्त (हाथ) ने उर्ध्व (उंचा) मुखवाला तेम महानींद्रनी पेठे एकाग्रमनवाला सुरेंद्रदत्ते चक्र छिद्र बराबर जोइ जलदीज राधानामनी पुतलीने बाणथी विधी नाखी अने राधावेधनी क्रिया बराबर करी // 58-59-60-61-62 // , विद्धाए तीए खित्ता वरमाला निव्वुइए से कंठे / आणंदिओ नरिंदो जयजयसद्दो समुच्छलिओ // 63 / / भावार्थः-राधावेध थयेलो जोइ ते राजकुमारीए सुरेन्द्रदतना गलामां घणा आनंदपूर्वक वरमाला नाखी, तेथी राजा पण प्रमुदित (हर्षवान्) थयो अने लोकोनी अंदर 'जयजय' शब्द थवा लाग्यो / 63 / विहिओ वीवाहमहो दिण्णं रज्ज पि से महोवइणा / जह तेण चक्कच्छिदं लद्धं न उ सेसकुमरेहि // 64 // भावार्थ:-अनुक्रमे जलदीज ते कुंवरीना विवाह
SR No.004393
Book TitleNarbhavdrushtantopnaymala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendrasuri
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1996
Total Pages184
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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