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________________ दृष्टांतोपसंहारोपदेशः : संजमगुणमणिमुगणा-मसमत्थो जत्थ विहारिओ / जस्स य कित्तिपडाया बिलसइ सद्धम्मोहुवरि / / 23 / / सिरिविजयप्पहसूरि-रज्जे सिरिविणयविमलकविराया / सिरिधीरविमलपडिय-सीसेण गएण गिट्टिा // 24 / / भावार्थ:-श्री तपागच्छरूप रत्नाकरना तरंगो वधारवा माटे संपूर्णचंद्रना जेवा सुविहितमुनिचडा. मणिभूत अने जगतना लोकथी प्रणमायेला अने जेमना संयमगुणरूप मणिरत्ननी परीक्षा जाणवा माटे विबुधनो [देवोनो] आचार्य बृहस्पति पण असमर्थ छ, वली जेनी कीर्तिरूप पताका (ध्वजा) सारा धर्मरूप घर उपर विलास करे छे (लहेकी रही छे) तेवा श्रीविजयप्रभसूरीश्वरना राज्यमा श्री विनयविमलगणि कविराज थया अने तेमना शिष्य पंडितश्रीधीरविमलगणि थया अने तेमना शिष्य पंडितन्यविमलगणिवंडे आ नरभवदृष्टान्तोपनयमाला निर्देशायेल (देखाडेल) छे / / 22-23-24 / / जाव य जंबद्दीवो जाव य गहगणविभूसिओ मेरु / ताव य उवणयमाला कुसलेहिं बाइया चिरं जयउ / / 25 / / भावार्थ:-ज्यांसुधी जंबुद्वीप रहे अने ज्यांसुधी ग्रहगण (समूह)थी विभूषित मेरुपर्वत रहे त्यांसुधी पडितोथी वंचायेल आ 'नरभवदृष्टान्तोपनयमाला' सदाकाल (यावञ्चंद्रदिवाकरौ) जयवंती वर्तो // 25 / /
SR No.004393
Book TitleNarbhavdrushtantopnaymala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendrasuri
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1996
Total Pages184
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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