________________ // 4 // अथ द्युतनामा चतुर्थो दृष्टान्तः // अत्थीह वसंतउरं नयरं नामेण धणकणसण्णाहं / पोढपरक्कमकलिओ जियसत्तू तत्थ आसि निवो // 1 // भावार्थ:-आ भरतक्षेत्रमा धनधान्यथी परिपूर्ण वसंतपुरनामे नगर छे, ज्यां प्रौढपराक्रमवालो जितशत्रु नामनो राजा हतो // 1 // भज्जा य धारणी से णियरूवविणिज्जियाणिमिसवल्लया / जाओ य तेसि तणुओ पुरंदरो रज्जभारसहो // 2 // भावार्थ:-तेनी रूपसुंदरताथी देवीने जीतीलेनार धारणी नामनी स्त्री हती, तेणीने राज्यकार्य करवामां कुशल पुरन्दरनामे पुत्र थयो हतो // 2 // चउविहबुद्धिसमेओ. अइनिम्मल विउलकुलसमुप्पण्णो / आसि अमच्चो सच्चो निच्चं सज्जो निवइकज्जे / / 3 / / भावार्थ:-चार प्रकारनी बुद्धि (औत्पातिकी, वैनयिकी, कार्मिकी, पारिणामिकी)थी युक्त निर्मलकुलमां पेदा थयेल सत्यनिष्ठ सर्वदा राजाना राज्यवहीवटमां तत्पर एवो एक मंत्री हतो // 3 / / थंभट्ठसयनिविट्ठा सुसिणिद्धाणेगरूवकलिया य / नरवइणो तस्स सहा अहियसिरिचित्तखोहसहा // 4 // भावार्थ:-ते राजाने अत्यंत मनोहर विविध