________________ 80 : : नरभवदिटुंतोवनयमाला ऋद्धिगारव, रसगारव, सातागारवरूप घर उपर उंची करेली पताकायुक्त ध्वजा जाणवी // 17 // सो गीयत्थो सूरी पत्तो देसंतरे खु कइयावि / / जणवयविहारकज्जे तं पासेत्ता सुया हट्ठा // 18 // भावार्थ:-ते गीतार्थसूरिरूप व्यवहारी जनपद (देश) मां विहार करवा माटे निश्चये कयारेक देशान्तरमां गया, ते जोइने पेला पांचकुगुरुरूप पांच पुत्रो हर्ष पाम्या एटले गीतार्थ परदेशमा विहार करे त्यारे कुगुरुओनु बल वधे ते माटे ते आनंद पामेज केमके सिंह ज्यांसुधी वनमां होय त्यां सुधी शियाल प्रमुखोनुं कांइ जोर चाले नहिं, ज्यारे सुगुरुगीतार्थरूप व्यवहारी परदेशे गया एटले पेला कुगुरुरूप पुत्रोनुं जोर वध्यु // 18 // अइणग्धं जिणवयणं रयणं विक्किज्ज अप्पमल्लेण / नियउयरपूरणट्ठा गारवकेऊ समुस्ससिया // 19 // . भावार्थ:-हवे ते गीतार्थरूप व्यवहारी ए देशान्तरमा विहार कर्या पछी पेला पांच कुगुरुरूप पुत्रोए अमूल्य अथवा बहुमूल्यवालुं श्रीतीर्थकरना वचनरूप रत्नने पोतानी उदरपूर्णा (पेट भरवा) माटे थोडी किम्मतमां वेचीने. (अमे पण कोटिध्वजो छीए) एम गारवरूप ध्वजाओ उंची करी दीधी // 19 //