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________________ 9 युगशमिला दृष्टांतः : : 151 जत्थ य जोयणसोलस-सहस्समाणा सिहा जलस्सावि। . तम्मज्झे हु निलीणा सूरावि हवंति सीयत्ता // 8 // भावार्थ:-जेमां सोलहजार योजनना प्रमाणवाली एक जलशिखा छे तेनी अंदर सूर्यो रहे छे तेओ पण शीतात एटले टाढथी पीडा पामेला थाय छ केमके ज्योतिश्चक्र 900 योजनमा छे // 8 // जत्थ महमच्छकच्छव-पीठपाठीननक्कचक्कोहो / जलकल्लोलक्खुभिय-दिसिचक्को जलयराइण्णो // 9 / / भावार्थ:-जेमां मोटामत्स्य (मांछलां) कच्छव (काचबा) पीठ, पाठीन (1000 दाढाना मत्स्यो), नक्र अने चक्रनो ओघ (समूह) के जे बीजा जलचरप्राणीओथी व्याप्त छ, तेमज पाणीना तरंगोथी दिशाओमां क्षोभ उत्पन्न करी रहेल छे // 9 // तइ केइ दुण्णि देवा अच्चन्भुयचरियकोउहल्लेण / जुगछिड्डाओ समिल विजोजइत्ता लहुं चेव / / 10 / / कह एसा जुगछिड्ड पुणोवि पाविज्ज इय मणे धरि। पत्ता सुमेरुसिहरे दोवि दोण्हं करे काउं // 11 // भावार्थ:-तेमां कोइ बे देवो आश्चर्यजनक कुतूहलथी प्रेराइ झोंसराना काणामांथी समिल [झोंसरामां नाखवानी. खोली] ने काढी 'आ समिल पाछी झोंसराना छिद्रमां केम पेशी जाय ?' एवा विचारथी
SR No.004393
Book TitleNarbhavdrushtantopnaymala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendrasuri
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1996
Total Pages184
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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