________________ (1) चुलकदृष्टांत : . एवं अणोरंवारे विणिगिण्हतं तहा पहासंतं / दळूण बंभदत्तं दीहो चुलणी समुल्लवइ / / 51 // भावार्थः-ए प्रमाणे अवारनवार कोइने शिक्षा करतां तेमज तेवा दुश्चेष्टित पुरुषनी खराब रीते मश्करी करता ब्रह्मदत्तने जोइ दीर्घनरेशे चुलणीराणीने का // 51 // णेयं परिणामसुहं जं जं पइएस तुज्झ किल पुत्तो। सा भणइ बालरूवो एत्थ वरज्झइ न सम्भावो // 52 // भावार्थ:-के-हे चुलणी ! तारो आ पुत्र जे कहे छे ते परिणामे सुखकर नथी, तेणीए उत्तरमा का के-बालक छे, एना कहेवामां कोइ गुप्त आशय नथी, मात्र क्रीडा करे छे / / 52 // मुद्धे न अन्नहेयं आरूढो जुव्वणं इमं कुमरो मज्झं / तुम्भं मरणाय ही होही भणइ इय दीहो // 53 // भावार्थः-तेना [चुलणीना] यार दीर्घन रेशे का के-हे मुग्धे ! मारुं कथन अन्यथा नथी, कुमार यौवन पामेल होवाथी मारा अने तारा बनेना मरणने माटे बस छे ! परिणाम अनिष्टज आववानुं / 53 / ता मारिज्जओ एसो केणावि अलक्खिए उवाएण / मइ साहीणे भद्दे अण्णे होहिति तुह तणुया / / 54 // * भावार्थः-तेटला माटे कली न शकाय तेवा कोइ उपायवडे तेने मारवो जोइए, जो हुँ तने स्वाधिन