________________ 5 आवश्यकचूर्णौ रत्नदृष्टांत: : : 83 उस्सुत्तवयणमिच्छा-उक्कडमालप्पमाणमुज्झत्ता / समायारीगेहं पांवंति ण कुसोलयाइया // 22 // भावार्थ:-ए प्रमाणे गीतार्थरूप पिताए तिरस्कार करीने शासनरूप घरमांथी बहार काढी मूक्या, एटले ते पोतानी इच्छाना उत्कटपणाथी बोलायेला उत्सूत्रवचननो त्याग कर्या विना अने कदाग्रहथी थोडी कीमते वेचो दीधेल अमूल्य जिनवचनरूप रत्नोने मेलव्या विना पेला कुशीलिया प्रमुख कुगुरु रूप कुपुत्रो फरीने समाचारीरूप घरने पामता नथी / 22 / पासत्थाइसरूवं इत्थ य कहियं ण वित्थरभयाओ। आवस्सयणिज्जुत्तीओ णेयं सुगुरुमुहाओ समं // 23 // भावार्थः-अहिं विस्तारना भयथी पासत्थादिनुं स्वरूप कहेवामां आव्युं नथी, जिज्ञासुओए आवश्यकनियुक्ति तेमज सद्गुरुमुखथी जाणी लेवें // 23 // जह तेसि पुत्ताणं हिच्चामाणं खु आणसालाए / दुटुं च समागमणं तह मणुयत्तं पुणो भट्ठ // 24 // भावार्थ:-जेम गएला रत्नोने लइने ते पुत्रोनुं पुनः पोताना घरे आवq दुर्लभ छे तेम गएल मनुष्यजन्मने फरी मेलववो अत्यंत दुर्लभ छे / / 24 / /