________________ 82 : : नरभवदिटुंतोवनयमाला विशुद्धकुलजातिवालाने ज आपे अने कुगुरुनी पासे आचार्यपदवी कागडाना गलामां मुक्ताफल (मोती) नी मालानी जेम जाणवी, तो पन्न्यासघद अने उपाध्यायपद तथा आचार्यपद ते केवा ? साधुपुरुषोने कोणे आपवां ते संबंधी विशेष विचार जाणवानी इच्छा होय तो आगमवाचनमीमांसावृत्तिथी जाणवू ए प्रमाणे पांच पुत्ररूप कुगुरुओ जाणवा // 20 // धिद्धिक्कारं कारिय सासणगेहाओ कड्ढिया दूरं / भणइ पिया जइ रयप्पाइं गिहिज्जा तो समेयव्वं // 21 // भावार्थः-तेवारपछी अमूल्य एवा श्रीतीर्थकरना वचनरूप रत्नने अल्पमूल्ये वेचीने अमो पण सर्वोत्कृष्ट छीए एम गर्विष्ट थएला पेला कुगुरुरूप पांच पुत्रोने अरे! धिक्कार छ ! धिक्कार छ ! तमने एम कहीने शुद्धगीतार्थरूप पिताए कह्य-अरे कुगुरुरूप पुत्रो ! जो तमारे फरी शासनरूप महारा घरमा प्रवेश करवानी इच्छा होय तो तमोए अल्पमूल्ये वेची दीधेला अमूल्य जिनवचनरूप रत्नो पाछा लइने आवशो तो हं तमोने महारा शासनरूप घरमां पेशवा दइश [ चतुर्विधसंघमां पाछा लइश ] ते शिवाय तो पेशवा नहि आपुं एज // 21 //