________________ : नरभवदिळूतोवनयमाला श्रुतधर्मरूपस्तंभ उपर आठ कर्मरूप . आठ चक्रो जाणवा // 73 // चत्तारि घाइकम्माइं अघाइकम्माइं तह य चत्तारि / मोहणीयट्टिइ राहा पंचाली सा मुणेयव्वा // 74 / / भावार्थ:-तेमां चार घाति (ज्ञानावरणी, दर्शनावरणी, मोहनीय, अंतराय) अने चार अधाति (वेदनीय, नाम, गोत्र अने आयुष्य) कर्मो छे, अने मोहनीयकर्मनी स्थितिरूप राधा नामनी पूतली जाणव // 74 // तव्वेहसाहणकए दुगवीससुया समागया तत्थ / चत्तारि चेडरूवा रागद्दोसा दुवे सुहडा / / 75 / / भावार्थ:-तेणीनो एटले. राधानामनी पूतलीनो वेध करवा माटे बावीस परीषहरूप बावीश पुत्रो हाजर थया तेमज चार कषायरूप चार दासीपुत्रो अने रागद्वेषरूप बे सुभटो पण राधावेध साधवा माटे बहु मथ्या // 75 / / तत्थ न पत्तं केहि वि कण्णालाहं तहा य जयवायं / निव्वीरं धरणियलं दळूणं विसाइया सवे / / 76 / / भावार्थ:-परंतु ते स्थले कोइए पण निर्वतिरूप कन्यानो लाभ न मेलव्यो, तेणी थती निंदा अने