________________ 44 : : नरभवदिट्टतोवनयमाला भावार्थ:-साकरवाला दुधथी भरेल थाल जे मां पूर्णचन्द्रनुं प्रतिबिंब पडेल छे, तेने ज़म जेम राणी पीती जाय छे तेम तेम झंपडीनं छिद्र, जेमांथी चंद्रनुं प्रतिबिंब थालमां पडतु हतु तेने एक मनुष्य उपर बेसी बंध करतो गयो / / 17 // ... उप्पत्तियाबुद्धिगुणेहिं देवी तुण्णं कया पुण्णमणोरहा सा / घेतूण लेहं अइतुट्ठचित्तो भमेइ देसं विहगुव्व विप्पो // 18 // भावार्थ:-ते देवीने औत्पातिकी बुद्धिना गुणोवडे करीने ते चाणाक्ये जलदी पर्णमनोरथवाली करीने लेख लइ अतितुष्ट चित्त थंइ पक्षीनी पेठे ते चाणाक्य देशमां भमवा लाग्यो / / 18 / / कमेण देवीहि सुओ पसओ सुहे दिणे भूमि जहा निहाणं / ईहाणुभावेण य तस्स चंद-गुत्तेत्ति नामं विहियं दिएहिं / 19 / ___ भावार्थ:-क्रमे ते देवीने शुभ दिवसे पुत्र उत्पन्न थयो मनोरथानुसार ब्राह्मणोए तेनुं चंद्रगुप्त नाम राख्यं // 19 // सो राजपुत्ता विहुमंडलुव्व पवढ्ढमाणो धुरि सुक्कपक्खे / वित्तंतमेयं सुणिऊण तुण्णं समागओ तंमि पुरे चणिवको / 20 / भावार्थ:-ते राजपुत्र शुक्लपक्षना चंद्रमंडलनी पेठे वधवा लाग्यो, आ वृत्तान्तने सांभली चाणाक्य शीघ्र ते नगरमां पाछो आव्यो // 20 //