________________ : नरभवदिटुंतोवनयमाला एक मोटो चक्रवर्तीपदनो महोत्सव थयो / / 95 / / . . नवनिहिपइणो तस्स-णयाओ भोग निसेवमाणस्स / विप्पो पुत्वपसंगी समागओ निवपलोयळं / / 96 / / भावार्थ:-अन्यदा नवनिधिना स्वामी नवनवा भोगने भोगवता ते ब्रह्मदत्तना दर्शनार्थे ब्राह्मण जे पूर्व परिचित हतो ते आव्यो / / 96 // स तस्स अणेगेसु विविहविहिकज्जरज्जसाहज्जो। अच्चतपरमभत्तो य आसी परमं पणयट्ठाणे // 97 / / .. - भावार्थ:-ते ब्राह्मण अनेक स्थलोमां विविधराज्यकार्योमां सहायता करनार होवाथी अने अत्यंतभक्तहोवाथी ब्रह्मदत्तने प्रेमपात्र हतो / / 97 / / रायाभिसेयमहिमा पवढ्ढमाणो य वासबारसगं / चक्की तेण न दिट्ठो अलद्धद्दारप्पवेसेण // 98 // . . भावार्थ:-राज्याभिषेकनो महिमा वधतो ज जतो हतो तेथी अनेक दरवानलोकोए पेसवा न. आपेलो होवाथी ते ब्राह्मण बार वर्षसुधी सजानुं दर्शन करवा न पाम्यो / / 98 // : ... तप्पज्जते बाढं निसेवमाणेण वारपालनरं / दिट्ठो कहमवि तेण य बारसमे बच्छरे राया / / 99 // भावार्थ:-त्यारबाद दरवानलोकोनी घणी सेवा करता ते ब्राह्मणे बारमे वर्षे ब्रह्मदत्तचक्रवर्तीने बहु मुश्केलीथी जोयो /