________________ 18 : : नरभवदिटुंतो वनयमाला अह चुलणीए तत्तो तस्स कए मग्गिया सबंधुसुया। . . पउणीकयं च सव्वं विवाहपाउग्गमुवगरणं // 62 / / भावार्थः-त्यारबाद चूलणीए पुत्रने माटे पोताना बंधुनी कन्यानी मागणी करीने विवाहयोग्य तमाम सामग्री तैयार करी // 62 / / थंभसयसंनिविट्ठ अइगूढपवेसनिग्गमदुवारं / कारावियं जउहरं वासनिमित्तं कुमारस्स / / 63 // ___ भावार्थ:-ने कुमारने वसवा माटे सो थांभला. वालुं तेमज अतिगूढ (न की शकाय तेवा) पेसवाना दरवाजावावं लाखनुं घर कराव्यं // 63 / / सं सव्वं वित्तंतं नाकण य पुत्तवरधणुमुहाओ / चितइ धण अमच्चो अहो ! अकज्ज कयं इए // 64 / / . भावार्थ:-ते सघला वृत्तान्तने पोताना पुत्र वरधनुना मुखथी सांभली वृद्धमंत्रीए विचार्यु के-अहो! आ स्त्रीए न करवानें काम कर्यु / / 64 / / सम्माणदाणगहिएहि अप्पणो मित्तगूढपूरिसेहिं / चउगाउयं सुरंग कारावइ जाव चउगेहं / / 65 / / भावार्थ:-सत्कार अने दानथी वश करेला पोताना मित्र अने गुप्तचरो पासे लाखना घरसुधी एक चार गाउनी सुरंग (भूमिमांथी गुप्त निकलवानो मार्ग) करावी // 65 // अह तक्कालं नरवइ कण्णा सा नियअमच्च संजुत्ता / विवाहत्थं पत्ता कंपिल्ले ऊसियपडाए // 66 //