________________ 134 : : नरभवट्टितोवनयमाला अत्रोपनययोजना, यथा हवे दृष्टान्त घटावे छे, जेमजह इंददत्तनरवई भवप्पवंचप्पयारपुरसामी / तह कम्मपरिणामनिवो अविरई तस्सम्गम हिसी य // 67 // भावार्थ:-जे इंद्रदत्तराजा हतो ते संसारप्रंपचना भेदरूप नगरनो स्वामी कर्मपरिणतिरूप राजा अने तेनी अविरति रूप पटराणी जाणवी // 67 / / बावीसा जह पुत्ता तह बावीसं परीसहा जाण / तिण्हाचेडी तस्स य पुत्ता चत्तारि य कसाया // 68 / / भावार्थः-बावीस पुत्रोना ,स्थानमां (ठेकाणे) अहिं बावीसपरिषह जाणवा अने दासीना चार पुत्रोने ठेकाणे तृष्णा रूप दासीना क्रोध, मान, माया अने लोभरूप चार पुत्रो जाणवा / / 68 / / जह अमच्चस्स य धूया दंसणमच्चस्स तह धुआ विरई / तद्दिट्टण य राया संजाओ रागपरतंतो / / 69 // भावार्थ:-प्रधाननी पुत्रीने ठेकाणे दर्शन[सम्यक्त्व] रूप प्रधाननो विरतिरूप पुत्रीने जोवाथी राजा रागपरतंत्र (रागवश) थयो // 69 / / पुण्णसिणेहेण तो विलासमाणस्स संभूओ गन्भो / अविरइसवित्तोहिं तओ राओ मंदीकओ तोसे / / 70 //