________________ // 3 // अथ सर्षपनामा तृतीयो दृष्टान्तः / / किल कप्पणाए केणवि सुरेण कोउहलेण सव्वाइं / धण्णाई मेलियाई भारहवासस्स तणयाइ / / 1 / / भावार्थ:-कोइ देवे कुतुहलथी भारतवर्षना तमाम धान्योने एकठां कर्यां (आ एक कल्पनिक प्रसिद्धी छ) // 1 // एगो सरिसवपत्थो अह खित्तो ताण मज्झयारंमि / आलोडियाई ताई भणिया एगा तओ थेरी // 2 // भावार्थ:-तेमां एक शेर जेटला सरसव नांखीने तेने हलावी हलावी एकमेक करी नांखी एक डोशीने कह्य // 2 // दुब्बलदेहा दारिद्द-दूमिया किंचि रोगविहूरंगी / तं सुप्पसणाहकरा विगिछ एयाइं धण्णाइ / / 3 / / भावार्थः-ते डोशी दुर्बल शरीरवाली अने दरिद्रने रोगथी विह्वलशरीरवाली हती, तेणीना हाथमां सूपडं आपी एम कहेवामां आव्युं के आ तमाम धान्यो- पृथक्करण करी नांख // 3 // ता जा सरिसवपत्थो पुण्णो सो चेव सा तहा काउं / पारद्धा मेलिज्जा किण्णं पत्थं सरिसवाणं // 4 // भावार्थ:-तेमांथी प्रथम सरसवनो प्रस्थ (शेर).