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| स्व संयेदनतश्चापि योगशास्त्रं विरच्यते ।।
श्रुतरुप समुद्रथी, सद्गुरुओनी परंपराथी अने स्वानुभवथी जाणीने हुं योगशास्त्र रचुं छु.
आम पू. हेमचंद्रसूरि महाराजे शास्त्रोथी, गुरुओना उपदेशथी अने पोताना अनुभवथी आ त्रण साधनो द्वारा योगशास्त्रनी रचना करी छे.
प्रथमना चार प्रकाश जैनआगमोमां अने शास्त्रोमां वर्णित वस्तुने संकलित करी दर्शन-ज्ञान अने चारित्रमा वर्णनरूपे आपेल छे.
पांचथी अगियार प्रकाश जैनशास्त्रो, इतरशास्त्रो अने गुरुभगवंतो द्वारा जाणेल ज्ञानने एकत्रित करी संकलित कर्या छे. अने बारमो प्रकाश पोताना अनुभवो द्वारा लख्यो छे.
आ योगशास्त्रमा मुळश्लोक १००९ छे अने तेनी वृत्ति ग्रंथकारे पोते लखी छे. ते वृत्तिनुं प्रमाण १२,००० श्लोक प्रमाण छे.
आ योगशास्त्रनी रचना कलिकाल सर्वज्ञ हेमचंद्रसूरि महाराजे परमार्हत् कुमारपाळ महाराजानी प्रार्थनाथी करेल छे. अने आ योगशास्त्रनी रचनाथी जे कांइ सुकृत में उपार्जन कय होय तेथी भव्य प्राणीओ बोधिलाभने पामे तेवा आशीर्वाद पूर्वक पोतान स्वोपज्ञ विवरण समाप्त करेल छे.
__ श्री चौलुक्यक्षितिपतिकृतप्रार्थ नाप्रेरितोऽहं, संप्राति योगशास्त्रात् तद्विवृतेश्चापि यन्मया सुकृतमः
तेन जिनबोधिलाभप्रणयी भव्यो जनो भवतात् ।। चौलुक्यवंशी कुमारपाल महाराजाओ करेली प्रार्थनाथी प्रेराइ ने में आ तत्त्वज्ञानना समुद्ररूप स्वोपज्ञ विवरण कर्यु
आ योगशस्त्रनी रचना द्वारा जे में कांइ पुण्य उपार्जन कर्यु होय तेथी भव्यजीवो बोधि पामो.
आम आ योगशास्त्रनी रचना महाराजा कुमारपालने लक्षमा राखी शास्त्रो, गुरुपरंपरा अने अनुभवथी महाराजा कुमारपालनी माफक बीजाओने पण उपकारी थाय ते रीते रचना करी छे.
ता. : २१-८-७२
-मफतलाल झवेरचंद गांधी.
'विशेष विवरण" प्रसंगोपात ऐसे दूसरे व्यापार भी न करने, जैसे - प्राणियों का हृदय निकालना, अंडकोष निकालना, कीडनी निकाल देना, मछली का तेल निकालना, पशुओं के शरीर में से रक्त निकालकर दवाइर्या बनाना, गर्भपात करवाना, संतति नियमन के प्रयोग करना, ऐसे साधन बेचना, शब के दाहदेने का सामान बेचना, जंतुनाशक पावडर बेचना, फीनाइन छांटना, चूहे, बंदर, कुत्ते आदि को मारने का व्यापार, कूटण खाने चलाना, सीनेमा नाटक आदि के द्वारा धनार्जन करना, टी.वी बेचना, टी.वी. के पार्टस आदि बेचना, फांसी की सजा देना, हिंसक दवाइर्या बेचना, बनाना, ये और इसके जैसे और भी व्यापार कर्मादान के अन्तर्गा है।
इसमें हिंसा का कार्य प्रथम वत के अतिचार में भी और आजीवि का के लिए ऐसा व्यापार कर्मादान के अन्तर्गत समझना।
योगशास्त्र तृतीय प्रकाश श्लोक नं. १११ के अन्तर्गत गुजराती भाषांतर में इस प्रकार का मेटरदिया है उपयोगी होने से यहां भी लिया है। - [इस प्रतिमा में इतना विशेष है कि- स्नान न करना, रात को चारो प्रकार का आहार त्याग, धोती की लांग खुल्ली रखना, चार पर्व के दिनों में संपूर्ण ब्रह्मचर्य पालन, अन्य दिनों में परिमाण निश्चित करना, काउस्सग में जिनेश्वर का ध्यान, पांच महिने तक काम-भोग की मनोमन निंदा] (गुजराती भाषांतर में पांचवी प्रतिमा में यह मेटर है।)
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