Book Title: Yogshastra
Author(s): Jayanandvijay
Publisher: Lehar Kundan Group

View full book text
Previous | Next

Page 15
________________ देवविमानो, ज्योतिषचक्र, नरकावासाओ, द्वीषो, समुद्रो, पर्वतो विगेरे चौद राजलोकमां शाश्वत अशाश्वत अनेकानेक स्थानोना माप परिमाणनी विचारणा ते गणितानुयोग छे. 'चिरसंचियपावपणासणीइ..' चिरंतन पापनो नाश करनारी जीवोने कल्याणमार्गना आलंबनरूप कथानो विस्तार ते कथानुयोग छे. सर्व विरति, देशविरतिथी मांडीने मार्गानुसारिपणाना गुण सुधीनी विचारणा, नाना-मोटा जीवनना अनुष्ठानो, चरण सित्तरि, करणसित्तरिनो विस्तार आ चरणकरणानुयोग छे. आ चारे अनुयोगमय द्वादशांगी छे अने ओ द्वादशांगीमांथी उतरी आवेलुं उत्तरोत्तर क्षीण थतुं आवेखें आजे आपणी पासे रहेलुं जे आगमश्रुत छे ते पण अ चार अनुयोगमय छे. आगमश्रुतने अनुसरी आपणा पूर्वाचार्यो ते ते अधिकारीओने अनुलक्षी अनेकविध साहित्य सर्जन कयुं छे. ते पण सघळु साहित्य चार अनुयोगरूप छे. ___ आ चारे अनुयोग, फळ से मोक्षप्राप्ति छे. अने द्रव्यानुयोग, गणितानुयोग अने कथानुयोग आ त्रणे अनुयोगसीमान्त चरणकरणानुयोग छे. आ चरणकरणानुयोगना संदर्भरूप योगशास्त्र छे. आमां मुख्यत्वे चरणकरणानुयोग छे. तेम छतां आ योगशास्त्रमा स्वोपज्ञ वृत्तिकारे बीजा त्रण अनुयोगनो संदर्भ पण आप्यो छे. कर्मना भेद, गुणस्थानकोनुं स्वरूप विगेरे जणावी द्रव्यानुयोग, चौद राजलोकनुं स्वरूप विगेरे रजु करी गणितानुयोग अने दरेक व्रतो उपर ते ते विषयने स्पष्ट करवा सुविस्तृतं कथाओ द्वारा कथानुयोग पण आ ग्रंथमा संकलित छे. अने आ चरण-करणानुयोगनुं फलितार्थ ज्ञानदर्शन अने चारित्र छे. आ त्रणेनो समुच्चय ते योग छे. ___ आथी ज कलिकाल सर्वज्ञ हेमचंद्रसूरि महाराजे पहेला प्रकाशना १५मा श्लोकना उत्तरार्धमा जणाव्युं छे के : ज्ञान-श्रद्धान-चारित्ररूपं रत्नत्रयं च सः ||१५|| आ योग ज्ञान, दर्शन अने चारित्ररूप रत्नत्रयीरूप छे. आथी आ योगशास्त्रमा ज्ञान, दर्शन अने चारित्रनुं वर्णन | अने विस्तार छे. योगशास्त्रमा प्रथम प्रकाशना १६मा श्लोकमां ज्ञान- वर्णन छे. यथावस्थिततत्त्वानां सङ्क्षपाद विस्तरेण वा । योऽवबोधस्तमत्राहुः सम्यग्ज्ञानं मनीषिणः ।।१।। यथावस्थित तत्त्वोनो संक्षेप के विस्तारथी जे अवबोध थवो तेने पंडितो सम्यग्ज्ञान कहे छे. रूचिर्जिनोक्ततत्त्वेषु...... प्रथम प्रकाशना सत्तरमां अने अढारमां श्लोकथी दर्शन अने चारित्रनुं स्वरूप बताव्युं छे, प्रथम प्रकाशना १९मां श्लोकथी ४६मां श्लोक सुधी चारित्रनी व्याख्या पांच महाव्रतोतुं स्वरूप, पांच समिति, त्रण गुप्तिनो परिचय बतावी सर्वात्मना यतीन्द्रणामेतश्चारित्रमीरितम् । यतिधर्मानुरक्तानां देशतः स्यादगारिणाम् ।। सर्व सावद्ययोगनी विरतिरूप आ चारित्र उत्तम मुनिवरोने होय छे अने यतिधर्म तरफ अनुरागवाळा गृहस्थोने | | देशथी देशविरति चारित्र होय छे. आ देशविरति चारित्रमा केवा प्रकारनो गृहस्थ धर्माधिकारी बनी शके ते माटे धर्माधिकारी बनवा माटे मार्गानुसारीपणाना ३५ गुणोनुं वर्णन प्रथम प्रकाशमा ४७ थी ५६ श्लोक सुधीमां आपी प्रथम प्रकाश पूर्ण करेल छे. आम खरी रीते प्रथम प्रकाश ग्रंथनी प्रस्तावना स्वरूप छे. बीजा प्रकाशमां 'ज्ञान-श्रद्धान-चारित्र रूपं' कही योगने ज्ञान, दर्शन, चारित्र रूप कहेल छे. तेना बीजा अंश तेथी vi

Loading...

Page Navigation
1 ... 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 ... 494