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जैन उपाश्रय भाणवड़ (जामनगर, सौराष्ट्र) संवत् २०३०, विजयादशमी २५-१०-७४
-मुनि पद्मविजय (वर्तमान पंन्यास पद्मविजयजी)
दूसरी आवृत्ति प्रकाशित की जा रही है, यह ज्ञानभक्ति-ज्ञानवृद्धि का अतीव प्रशंसनीय कार्य हो रहा है। इस ग्रंथ को अनेक भाषाओं में प्रकाशित करके देश विदेश में जैन योगशास्त्र का प्रचार हो और वीतराग परमात्मा का शुद्ध मार्ग ग्रहण कर सभी जीवात्मा मोक्ष पद प्राप्त करे यही एक हार्दिक शुभ अभिलाषा है। २०४६ वसंत पंचमी
पंन्यास पद्मविजय चरखी दादरी भिवानी (हरियाणा)
धर्मलाभ ३१-०१-९०
• यह योगशास्त्र का भाषांतर आहोर के श्री राजेन्द्र जैन बृहद् ज्ञान भंडार में देखा, पढ़ा और इसकी उपयोगिता को जानकर इसे पुनः प्रकाशित करवाने का विचार किया। वर्तमान में श्री पद्मसूरीश्वरजी की दूसरी आवृति में प्रचार करने की भावना को लक्ष में रखकर इसे प्रकाशित करवा रहे हैं। सरिजी ने योगशास्त्र की प्रस्तावना में इस ग्रंथ की महत्ता को उजागर की है। वह पर्याप्त होने से मैं उसी की पुष्टी करता है। यह ग्रंथ श्री गुरुरामचंद्र प्रकाशन समिति, भीनमाल के द्वारा प्रकाशित होकर जन-जन के लाभार्थ निःशुल्क वितरण किया जायेगा। अतः पाठक गण लाभान्वित बनें।
- जयानंद शंखेश्वर तीर्थ . २०६५ चैत्र वदि १२ २३-०३-२००९ उपधान माला प्रसंगे
___ "विशेष विवरण" योगशास्त्र के गुजराती अनुवाद में सामायिक की व्याख्या में तृतीय प्रकाश ८२-८३ गाथा के अन्तर्गत हिन्दी के पेज नं. २१० . पर वोसिरामि शब्द की व्याख्या के बाद गुजराती भाषांतर में भाषांतर कार ने जो विशेष व्याख्या की है वह निम्नानुसार है :
अहिं सामायिक करवाना समये आत्मानो पापयुक्त जे पूर्व पर्याय तेनो त्याग अने ज्ञान-दर्शन-चारित्र ए रत्नमय आत्मानो नवो पर्याय तेनी उत्पत्ति थती होवाथी ते पूर्व पर्यायी आत्माने तजु छु एम कही शकाय छे. कारण के पर्यायो एटले भिन्न भिन्न क्रमशः प्रकट थती आत्मानी अवस्थाओ अने पर्यायी एटले ते अवस्थाओनो आधार आत्मा. ए पर्यायो अने पर्यायी बन्ने अपेक्षाए भिन्न होवाथी मारा आत्माने तनुं छु. हुं नवो उत्पन्न थयो एम कहेवू ते असत्यरूप नथी.
आचारांग सूत्रमा कडं छे के आयाखलु सामाइअं अर्थात् आत्मा एज सामायिक छे. तात्पर्य के जेम सामायिक आत्मानो एक पर्याय छे अने पोतानी ए पर्यायथी आत्मा कथंचित् अभिन्न छे. एम मानी त्यां आत्माने ज सामायिक रूपे कह्यो छे. तेम अहिं अपेक्षाए पर्यायनो भेद मानीने हुं मारा ते आत्माने वोसिरावं छ, एम का छे. तेमां तात्पर्य ए छे के हुं मारा पूर्वना ते पापी पर्याय ने वोसिरावं
- नवी अष्टुति पेज नं. २२५.