________________
महापुराणान्तर्गत उत्तरपुराण
इसमें सीताके आठ पुत्र बतलाये, पर उनमें लव-कुशका नाम नहीं है। दशानन विनमि विद्याधर के वंशके पुलस्त्यका पुत्र था । शत्रुओंको सताता था इस कारण वह रावण कहलाया। आदि ।
जहाँ तक मैं जानता हैं. यह उत्तरपुराणकी रामकथा श्वेताम्बर सम्प्रदायमें प्रचलित नहीं है। आचार्य हेमचन्द्र के त्रिषष्टिशलाका पुरुष चरितमें जो रामकथा है, उसे मैंने पढ़ा। वह बिलकुल 'पउमचरिय' की कथाके अनुरूप है। ऐसा मालूम होता है कि 'पउमचरिय और पद्मचरित दोनों ही हेमचन्द्रा. चार्यके सामने मौजूद थे। जैसा कि पहले लिखा जा चुका है दिगम्बर सम्प्रदायमें भी इसी कथाका अधिक प्रचार है और पीछेके कवियोंने तो इसी कथाको संक्षिप्त या पल्लवित करके अपने अपने ग्रंथ लिखे हैं। फिर भी उत्तरपुराणकी कथा बिलकुल उपेक्षित नहीं हुई । अनेक कवियों ने उसको भी आदर्श मानकर काव्य रचना की है। उदाहरणके लिए महाकवि पुष्पदन्तको ही ले लीजिये। उन्होंने अपने उत्तरपुराणके अन्तर्गत जो रामायण लिखी है, वह गुणभद्रकी कथाकी ही अनुकृति है। चामुण्डरायपुराणमें भी वही कथा है।
पउमचरिय और पद्म चरितकी कथाका अधिकांश वाल्मीकि रामायणके ढंगका है और उत्तरपुराण की कथाका जानकी-जन्म अद्भुत रामायणके ढंगका। दशरथ बनारसके राजा थे यह बात बौद्ध जातकसे मिलती जुलती है। उत्तर पुराणके समान उसमें भी सीता निर्वासन, लव-कुश जन्म आदि नहीं है।
अर्थात् भारतवर्ष में रामकथाकी जो दो तीन परम्पराएँ हैं, वे जैन सम्प्रदायमें भी प्राचीन कालसे चली आ रही हैं । पउमचरिउके कर्ताने कहा है कि उस पद्मचरितको मैं कहता हूँ जो आचार्योंकी परम्परासे चला आ रहा था और नामावली निबद्ध था। इसका अर्थ मैं यह समझता हूं कि रामचन्द्रका चरित्र उस समय तक केवल नामावलीके रूपमें था, अर्थात् उसमें कथाके प्रधान प्रधान पात्रोंके, उनके माता-पिताओं, स्थानों और भवान्तरों आदिके नाम ही होंगे, वह पल्लवित कथाके रूपमें नहीं होगा और उसीकी विमल सुरिने विस्तृत रचनाके रूपमें रचना की होगी। श्री धर्मसेन गणीने वसुदेवहिंडिके दूसरे खण्डमें जो कुछ कहा है उससे भी यही मालूम होता है कि उनका वसुदेवचरित भी गणितानुयोगके क्रमसे निर्दिष्ट था। उसमें कुछ श्रुतिनिबद्ध था और कुछ आचार्य परम्परागत था।
जब विमलसूरि पूर्वोक्त नामावलीके अनुसार अपने ग्रन्थकी रचनामें प्रवृत हुए होंगे तब ऐसा मालूम होता है कि उनके सामने अवश्य ही कोई लोकप्रचलित रामायण ऐसी रही होगी जिसमें रावणादि को राक्षस, वसा-रक्त-मांसका खाने पीनेवाला और कुम्भकर्णको छह छह महीने तक इस तरह सोनेवाला कहा है कि पर्वत तुल्य हाथियोंके द्वारा अंग कुचले जाने, कानों में घड़ों तेल डाले जाने और नगाड़े बजाये जाने पर भी वह नहीं उठता था और जब उठता था तो हाथी भैंसे आदि जो कुछ सामने पाता था, सब निगल जाता था। उनकी यह भूमिका इस बातका संकेत करती है कि उस समय वाल्मीकि रामायण या उसी जैसी राम कथा प्रचलित थी और उसमें अनेक अलीक, उपपत्तिविरुद्ध तथा अविश्वसनीय बातें थीं, जिन्हें सत्य, सोपपतिक और विश्वास योग्य बनानेका विमलसूरिने प्रयत्न किया है। जैनधर्मका नामावली निबद्ध ढांचा उनके समक्ष था ही और श्रुति परम्परा या आचार्य परम्परासे आया हुआ कथासूत्र भी था । उसीके आधार पर उन्होंने पउमचरियकी रचना की होगी।
उत्तरपुराणके कर्ता उनसे और रविषेणसे भी बहुत पीछे हुए हैं। फिर उन्होंने इस कथानकका अनसरण क्यों नहीं किया, यह एक प्रश्न है। यह तो बहुत कम संभव है कि इन दोनों ग्रन्थोंका उन्हें पता न हो और इसकी भी संभावना कम है कि उन्होंने स्वयं ही विमलसूरिके समान किसी लोक-प्रचलित कथाको ही स्वतन्त्ररूपसे जैनधर्मके सांचे में ढाला हो क्योंकि उनका समय वि० सं० ९५५ है जो बहुत
१पंपकविकी कनड़ी रामायण और स्वयंभू कविकी अपभ्रंश रामायण पद्मपुराणके आधार पर लिखी गई है। २"णामावलियणिबद्ध आयरियपरंपरागयं सव्वं । वोच्छामि पउमचरियं अहाणपब्विं समासेण॥८॥" ३ देखो पउमचरिय गाथा १०७ से ११५ तक ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org