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प्रातःस्मरणीय परमपूज्य स्वामोजी श्री हजारीमलजी म. सा. के करकमलों द्वारा महासतीजी श्रीसरदारकुंवरजी म. सा. के नेश्राय में संपन्न हुई।
महासतीजी म. सा. के गुण, विशेषताएं अपरिमित हैं, मैं उनका कहां तक वर्णन कर सकता हूँ। __मैं पूज्य महासतीजी म. सा. का शत-शत वन्दन, अभिनन्दन करता हया उनके दीर्घ जीवन की मंगल-कामना करता हूँ।
उदारहदया महासतीश्री
। हस्तीमल मुणोत यह जानकर हार्दिक प्रसन्नता हुई कि परम विदुषी महासती श्री उमरावकुंवरजी म. सा. 'अर्चना' के तितिक्षामय जीवन के पचास वर्ष पूर्ण होने पर उन्हें एक अभिनन्दन ग्रन्थ भेंट किया जा रहा है।
मुझे आपके दर्शन करने का अनेकों बार मौका मिला है। मैंने आपको सदैव विनयशील एवं प्रसन्नचित्त पाया है। उदारता तो आपमें इतनी है जो अन्यत्र कहीं भी देखने को नहीं मिली। उदारता के इस जबर्दस्त गुण के कारण आप हर परिस्थिति में हर एक व्यक्ति की श्रद्धा का केन्द्र बन जाती हैं और जो एक बार आपके सम्पर्क में आता है वह जीवन भर आपका भक्त बनकर रह जाता है।
मैंने सुना और पढ़ा भी है कि जब समुद्रमंथन हुआ था तब विष निकला था और जनकल्याण को ध्यान में रखकर शिव ने वह गरल पान किया किंतु वर्तमान में मैंने स्वयं देखा है कि विगत कुछ वर्षों में इतनी विषम परिस्थितियां रहीं जिनका विवरण यहाँ देना विषयेतर होगा। इन कठिन परिस्थितियों में भी आप निश्चल, विनयी बनी रहीं, धैर्य धारण किये रहीं और सभी प्रकार की वाणी के प्रहारों को उदारतापूर्वक सुनती रहीं। इससे बढ़कर विषपान प्राधुनिक युग में और क्या हो सकता है। आपने भी जो जहर पीया है वह भी जनकल्याण की भावना को दृष्टिगत रखते हुए पीया है । उदारता की ऐसी महिमामय साध्वीरत्न हैं आप।
सभी जानते हैं कि मैं सदा घूमता रहता हूँ, सभी साधु साध्वियों की सेवा में जाता रहता हूँ। मैं जब भी आपकी सेवा में आता हूँ तो मुझे अनन्य शांति मिलती है। जो शांति मुझे आपके सान्निध्य में प्राप्त होती है, वह अन्यत्र दुर्लभ है। एक बार आपकी सेवा में आने
के बाद फिर जाने की इच्छा नहीं होती, किन्तु यह संसारचक्र है, कई कार्य हमें मजबूर होकर . भी करने पड़ते हैं । बस, तो मुझे भी न चाहते हुए भी आपके पास से जाना ही पड़ता है।
इस अवसर पर मैं आपका हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ और आपके सुदीर्घ जीवन की कामना करता हूँ।
आई घडी अभिनंदन की चरण कमल के वंदन की
प्रथम खण्ड /२७
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