Book Title: Tirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 1
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Shantisagar Chhani Granthamala
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पन्न-सम्पावन मुद्रमाक्रम में युगों-युगोंमें जैनधर्म
भारत धर्म महामण्डल बम्बई सपने मो रह गये बारे
१. महाकवि कालिदासकी उपमान-योजना २. वाक्यगठन : वृत्तिविचार ३. अधमीमांसा-सिद्धान्त और विनिमय ४. महाकवि वाणके शतशब्द ५. संस्कृत ऐतिहासिक नाटकोंका विवेचनात्मक अनुशीलन ६. जैनदर्शन ७. संस्कृत कवियोंका जीवन-दर्शन ८. समराइच्चकहा (सम्पादन) ५. चन्द्रमालन न समायम
आचार्य शास्त्रीने इन ग्रन्थोंको आरम्भ किया था, पर वे इन्हें पूरा नहीं कर सके। प्रसिया ___ आचार्य शास्त्री न केवल साहित्य-साधक मनीषी थे, अपितु समाज-सेवक एवं लोक-सेवक भी थे। आपकी सेवाएं एवं प्रवृत्तियां बहुमुखी थीं। उनमें कुछ इस प्रकार हैं
१. मानद निदेशक : देव कुमार जैन प्राच्यविद्या शोध-संस्थान २. उपाध्यक्ष : अखिल भारतीय दि० जेन विद्वत्परिषद् ३. संयक्त मंत्री श्री गणेशवर्णी दि० जेन संस्थान, वाराणसी ४. ट्रस्टी : वीर सेवा मन्दिर-ट्रस्ट, वाराणसी ५. सदस्य-प्रबन्धकारिणी : स्याद्वाद-महाविद्यालय, वाराणसी
इनके अतिरिक्त हिंसा, प्राकृत और जैन विद्या शोधसंस्थान वैशाली (बिहार), बिहार प्रान्तीय दि० जैन तीर्थक्षेत्र कमेटी आदि संस्थाओंके भी आप मानद सदस्य थे। उन्जेन (म० प्र०) में हुए अखिल भारतीय प्राच्य-विद्या सम्मेलनके २६वें अधिवेशनमें प्राकृत और जैन विद्या विभागके आप अध्यक्ष हुए थे। इस तरह आचार्य शास्त्रीका समग्र जीवन लोक-सेवा एवं सांस्कृतिक प्रवृत्तियोंमें सदैव घुला-मिला रहा । एक दर्जनसे अधिक छात्रोंको विभिन्न जैन अथवा अन्य विषयों में पी-एच. डो० कराया और उसके लिए सदा उद्यत रहे। आप छात्रों और अध्यापकोंके परमहितेषी एवं कल्पतरु थे । परिवार आपके परिवारमें ७० वर्षीया वृद्धा माता जावित्री बाईजी, विधवा पत्नी
प्राचार्य नेमिचन्द शास्त्री : २५