Book Title: Tirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 1
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Shantisagar Chhani Granthamala
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जन्मकुण्डली
मंगल १. केस
७ शनि
(१) जब व्यक्तिका जन्म 'चर' लग्नमें हो; गुरु, शुक्र पंचम या नवम भावमें स्थित हों और शनि केन्द्रमें हो, सो जातक, तीर्थनायक या अवतारी होता है।
(२) सप्तम भावमें राहु स्थित हो, इस भावपर पापग्रहकी दृष्टि हो, सप्तमेश पापाकान्त हो, तो पत्नीका अभाव रहता है। ऐसे जातकका विवाह नहीं होता, इस योगसे उसके संयमी हानेको सूचना मिलती है ।
(३) तीर्थकर महावीरको कुण्डलीमें शुक्र और चन्द्रमा १२० अंशके अन्तराल पर स्थित हैं । यह स्थिति उनकी सर्वकासा और वीतरागताको सूचक है । चन्द्रमा नवम भावमें स्थित है और बुधके गृहमें है और बुध केन्द्रमै सूर्य के साथ है। चन्द्रमा सप्तमेश भी है । अतएव महावीरको बारह वर्षों तककी साधनाके सूचक हैं। नवमस्थ चन्द्रमा दर्शनशास्त्र, आचारशास्त्र एवं विभिन्न प्रकारके शानविज्ञानकी अभिज्ञताका सूचक है। जातकका प्रभाष अनुपम रहेगा और यह समाजका उद्धारक होगा।
{४) महावीरकी इस कुण्डली में चन्द्रचूड़ योग है । इस कुण्डलीमें भाग्येश बुध केन्द्रमें स्थित है । अतः यह योग चन्द्रचूड़ कहलाता है । इस योगमें जन्म लेनेवाला व्यक्ति प्रसिद्ध ज्ञानी, आत्मयोगी एवं धर्मप्रचारक होता है। लोक
१. पत्नीभावे या राहः पापपुरमेन वीक्षितः ।
पत्नी योगस्थिता तस्य भूवाऽपि म्रियतेऽचिरात् ।। २. लाभे त्रिकोणे यदि शीतरषिम: करोत्यवश्यं क्षितिपालतुल्यम् ।
कुलदयानन्दकरं नरेन्द्र जोत्स्ना हि दीपस्तमनाशकारी ।। १०८ : तीर्थकर महावीर और उनकी प्राचार्य-परम्परा
-मानसागरी।