Book Title: Tirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 1
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Shantisagar Chhani Granthamala
View full book text
________________
जैसा समझदार पुत्र किसी सौभाग्यवती माताको ही प्राप्त होता है। अभी तो महावीरका मन कच्चा है, समय आने पर उसे बदलना सम्भव है।
माता त्रिशलाने एकान्त देखकर एकाध बार अपने पुत्रसे प्रेमपूर्वक पाणिग्रहण करनेका अनुरोध भी किया, पर महावीरका दृढ़ संकल्प ज्यों-का-त्यों बना रहा । उन्होंने अपनी स्नेहमयी माताको समझाया और बतलाया कि इस समय अस्स नताकी रक्षा माना जाता है। महावीरके चिन्तनको ज्ञात कर माता त्रिशलाको भी यह निश्चय होने लगा कि महावीर अपने संकल्पपर अडिग रहेगा और यह सांसारिक बन्धनमें न बंधकर स्वन्त्र रूपसे जन-क्रान्ति करेगा। संसारको कोई भी मोह-माया इन्हें बाँध नहीं सकती है । यह तो वर्गहीन समाजको स्थापना कर आत्म-स्वातन्त्र्य लाभ करेगा। अतएव पुत्र विवाह न भी करे, तो भी मेरी आँखोंके समक्ष बना रहे यही मेरे लिये बहुत है । यौवन और गृह-निवास
तीर्थंकर महावीरका जन्म ऐश्वर्य पूर्ण परिवेशमें हुआ था और उनके चारों ओर परिवार एवं वैशाली गणतन्त्रकी समृद्धि व्याप्त थी । युवावस्थाके प्राप्त होनेपर उन्होंने विवाह न करनेका दृढ़ संकल्प किया एवं उनके हृदयमें विरागका अंकुर पल्लवित हुआ । भोगसे योगकी और उनकी प्रवृत्ति बढ़ने लगी। यत: अतिसमृद्धि से हो त्यागकी प्रवृत्ति जन्म लेती है। गहरे रागमें विराग पनपता है 1 राजभवन में नर्तकियोंके पग-नूपुरकी झंकार सुनायी पड़ती, परिचारक इच्छा व्यक्त होनेके पहले ही भोग-सामग्रियाँ प्रस्तुत कर देते । उत्तरोत्तर भोगके साधन बढ़ रहे थे। ___ पंचेन्द्रियोंके रमणीय सुख पूर्णरूपेण समवेत थे। न अशन-वसनकी कमी थी
और न भोग-सामग्रीका ही अभाव था। महावीर प्रातःकाल व्यायाम आदिसे निवृत हो एकान्त चिन्तनमें समय यापन करते । रमणीयाहरितवसना वसुन्धरा महावीरके मनको प्रसन्न करती। वैशालोके जनपदमें ऐसा एक भी व्यक्ति नहीं था, जो महावीरका सम्मान न करता हो। वे सभीकी औखोंके तारा थे । काञ्चन वर्ण और गम्भीर मुखमुद्राको देखकर जन-जन उनके चरणों में नतमस्तक हो जाते थे । जब महावीर नगर-परिभ्रमणके लिये निकलते तो पौराङ्गनाएं गवाक्षोंसे एकटक दृष्टिसे देखा करती थीं । राजकुमार महावीरको सभी भोग-सामग्रियाँ प्रचुर रूपमें उपलब्ध थीं।
बड़े बड़े सामन्त और मुकुटधारी नृपतिगण उनके चरणोंकी वन्दना करते थे। वे अपनी कठिनाइयां उन्हें निवेदित करते और विचक्षणबुद्धि महाबीरसे अपनी १२६ : तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य-परम्परा