Book Title: Tirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 1
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Shantisagar Chhani Granthamala
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विभाग आपका कार्य करता है। महावीर कई महीनोंसे कोई अभिग्रह लेकर राजधानोमें चर्या के हेतु भ्रमण करते हैं। पर अभिग्रह पूर्ण न होनेसे वे बाहार ग्रहण किये बिना ही लौट जाते हैं ! क्या आपके व्यक्ति उनके अभिनहका पता नहीं लगा सकते? आपने कभी यह सोचा भी नहीं कि महावीर आहार क्यों ग्रहण नहीं करते ? आपके इतने बड़े राज्यकी सार्थकता तभी है, जब आप अभिग्रहकी जानकारी प्राप्त करें। आज नगरमें सर्वत्र यही चर्चा है ।"
राजा शतानीक-"देवि ! चिंता मत करो। मैं शास्त्रज्ञ विद्वानोंको बुलाकर आहार-सम्बन्धी सभी अभिनहोको जानकर नगरमें घोषणा करा दूंगा कि सभी भव्य उक्त अभिग्रहोंको एकत्र करनेका प्रयास करें।
राजाने सभापण्डित तथ्यवादीको बुलाया और कहा-"महाशय ! धर्मशास्त्रोंमें साधुकी चर्याका जो आचार वर्णित है, आप उसे सुनाइये । साधु भोजनके लिए जाते समय किस प्रकारके अभिग्रह ग्रहण कर सकता है, यह भी बतलाइये। आप जानते होंगे कि हमारी नगरीमें महावीर कोई दुर्बोध अभिग्रह लेकर कई महीनोंसे निराहार रह रहे हैं। जबतक उनका अभिग्रह नहीं मिलेगा, वे आहार ग्रहण नहीं करेंगे। अतएव शास्त्रोंमें जितने प्रकारके अभिग्रह वणित हों, नगरमें उन सभीकी व्यवस्था कर दूं।" _ राजाने सुगुप्त महामात्यकी ओर संकेत करते हुए कहा-"मन्त्रिवर ! आप भी अपनी बुद्धिका उपयोग कीजिए और महावीरके अभिग्रहका पता लगाइये।" ___ सभापण्डित--"राजन् ! अभिग्रह अनेक प्रकारके होते हैं, अतः यह कैसे जाना जाय कि किसके मनमें क्या अभिप्राय है? द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव. विषयक अभिग्रह, पिण्डेषणा और पानेषणा-सम्बन्धी विविध नियम शास्त्रोंमें बाये हैं।" __ राजा शतानीकने शास्त्रोंमें उल्लिखित चर्या-सम्बन्धी विधि-विधानकी जान कारी प्रजाको कराई । अनेक प्रकारके अभिग्रहोंकी पूत्तिका भी प्रबन्ध किया गया; पर महावीरका आहार न हो सका। महावीरको निराहार पांच महीने बीत चुके थे और छठा महीना पूरा होनेमें केवल पांच दिन शेष रह गये थे । दोपहरका समय था । सारा कौशाम्बी नगर महावीरके जयघोषसे गूंज रहा था। नगरके एक कोनेसे दूसरे कोने तक विद्युत-तरंगकी भांति यह समाचार व्याप्त हो गया कि महावीर आहारके लिये बा रहे हैं।
महावीर आहारके निमित्त नगरमें धूमने लगे। द्वारद्वारपर लोग उनकी प्रतीक्षा करने लगे । कोशाम्बी-निवासी आश्चर्यपूर्वक यह देखने के लिये उत्सुक
सीकर महावीर और बनकी देशना : १६७