Book Title: Tirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 1
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Shantisagar Chhani Granthamala
View full book text
________________
दो दिन अवशिष्ट रहनेपर विहाररूप काययोग, धर्मोपदेशरूप वधनयोग एवं क्रियारूप मनोयोगका निरोधकर प्रतिमायोग धारण किया और पावापुर के बाहर अवस्थित सरोवरके मध्य में कायोत्सर्ग ग्रहणकर अघातिया कोकी पचासी कर्म-प्रकृतियोंका क्षय किया।' कार्तिक कृष्णा चतुर्दशीकी रात्रिके अन्तिम प्रहरमें स्वाति नक्षत्रके रहते हुए ई० पू० ५२७ में मोक्षपद प्राप्त किया।
श्वेताम्बर-ग्रन्थोंकी मान्यता अनुसार तीर्थंकर महावीर पावा नगरीके राजा हस्तिपालक रजक सभा-भपन समावस्याको समरस :नि पशिला करते हुए मोक्ष पधारें। अगणित देव-मानवों द्वारा निर्वागकल्याणक-पूजन
कात्तिक कृष्णा चतुर्दशीकी पावन रात्रि अपना घूघट उठाकर मानवताके उन्नायक तीर्थकर महावीरका निर्वाणोत्सव मनानेके लिये समक्ष थी। देवमानवोंमें हर्षका सागर उमड़ पड़ा और सभी महाबीरका निर्वाणोत्सव सम्पन्न करने के लिये चल पड़े। पावापुरका कोना-कोना सज उठा । घरघरमें मंगलगान हए । द्वार-द्वारपर मंगलदीप जलाये गये। जन-जनके हदयसे आनन्दका स्रोत फूट पड़ा, उल्लासकी लहर दौड़ गयी और सभी निर्वाण-पूजनके लिये अर्चन-सामग्री लेकर प्रस्तुत हुए।
पौ फटने जा रही थी। चन्द्रमा स्वाति नक्षत्रके साथ विचरण कर रहा था और इन्द्र के जय-जयकारसे नभोमंडल ध्वनित था । यों तो महाबीरके परिनिर्वाणसे शन्यता और स्तब्धता व्याप्त थी। पर मोक्ष-लक्ष्मीको प्राप्तिके कारण देवगण उत्तमोत्तम सामग्नी लेकर निर्वाण-कल्याणके अर्चन हेतु भा रहे थे।
कृत्वा योगनिरोषमुज्विातसभः षष्ठेन तस्मिन्वने । व्युत्सर्गेण निरस्य निर्मलक्षषि कर्माण्यशेषाणि सः । स्थित्वेन्दावपि कार्तिकासितचतुर्दश्यां निशान्तें स्थिते। स्वाती सन्मतिराससाद भगवान्सिद्धि प्रसिद्ध श्रियम्॥
-असगकवि-विरचित बर्द्धमानचरित, सर्ग १८, पच ९७-९८. १. 'षष्ठेन निष्ठितकृतिजिनवर्षमानः ।' टोका-'षष्ठेन दिनदयेन परिसंख्याते वायुषि
सति निष्ठितकृतिः। निष्ठिता विनष्टा कृतिः द्रव्यमनोवाक्कायक्रिया यस्यासी निष्ठित
कृतिः, जिनवर्धमानः ।' -पूज्यपादकृत सं० निर्वाण-मनि, श्लोक २६. २. मुनिश्री कल्याणविजयगणि-लिखित श्रमण भगवान महावीर, पृ. २०६, २०७. २९० : तीर्थकर महावीर और उनकी आचार्य-परम्परा