Book Title: Tirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 1
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Shantisagar Chhani Granthamala

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Page 620
________________ और फलस्वरूप वह इन दोषोंको समाजमें भी आरोपित करता है, जिससे समाज में भेदभाव उत्पन्न हो जाते हैं और शनैः शनैः समाज विघटित होने लगता है। समानधर्मकी पहली सीडी : विचारसमन्वय-उदारवृष्टि __"मुण्डे-मुण्डे मतिभिन्ना" लोकोक्तिके अनुसार विश्वके मानवों में विचारभिन्नताका रहना स्वाभाविक है, क्योंकि सबकी विचारशैली एक नहीं है। विचार-भिन्नता ही मतभेद और विद्वषोंको जननी है । वैयक्तिक और सामाजिक जीवनमें अशान्सिका प्रमुख कारण दिनारोंमें भेद नोना ही है। विचारभेदके कारण विद्वेष और घूमा भी उत्पन्न होती है। इस विचार-भिन्नताका शमन उदारदृष्टि द्वारा ही किया जा सकता है । उदारदृष्टिका अन्य नाम स्याद्बाद है। यह दृष्टि ही आपसी मसभेद एवं पक्षपातपूर्ण नोतिका उन्मूलन कर अनेकतामें एकता, विचारोंमें उदारता एवं सहिष्णुता उत्पन्न करती है। यह विचार और कथनको संकुचित, हठ एवं पक्षपातपूर्ण न बनाकर उदार, निष्पक्ष और विशाल बनाती है। वास्तवमें विचारोंकी उदारता हो समाजमें शान्ति, सुख और प्रेमकी स्थापना कर सकती है। माज एक व्यक्ति दूसरे व्यक्तिसे, एक वर्ग दूसरे वर्गसे और एक जाति दसरी जातिसे इसीलिए संघर्षरत है कि उससे भिन्न व्यक्ति, वर्ग और जातिके विचार उनके विचारोंके प्रतिकूल हैं । साम्प्रदायिकता और जातिवादके नशेमें मस्त होकर निर्मम हत्याएं की जा रही हैं और अपनेसे विपरीत विचारवालोंके ऊपर असंख्य अत्याचार किये जा रहे हैं। साम्प्रदायिकताके नामपर परपस्परमें संघर्ष और क्लेश हो रहे हैं। धर्मकी संकीर्णताके कारण सहस्रों मुक व्यक्तियोंको तलवारके घाट उतारा जा रहा है । जलते हुए अग्निकुण्डोंमें जीवित पशुओंको डालकर स्वर्गका प्रमाणपत्र प्राप्त किया जा रहा है। इस प्रकार विचारभिन्नताका भूत मानवको राक्षस बनाये हुए है।। उदारताका सिद्धान्त कहता है कि विचार-भिन्नता स्वाभाविक है क्योंकि प्रत्येक व्यक्तिके विचार अपनी परिस्थिति, समझ एवं आवश्यकताके अनुसार बनते हैं। अत: विचारोंमें एकत्व होना असम्भव है। प्रत्येक व्यक्तिका ज्ञान एवं उसके साधन सीमित हैं। अतः एकसमान विचारोंका होना स्वभावविरुद्ध है। अभिप्राय यह है कि वस्तुमें अनेक गुण और पर्याय-अवस्थाएं हैं। प्रत्येक व्यक्ति अपनी शक्ति एवं योग्यताके अनुसार वस्तुकी अनेक अवस्थामोंमेंसे वीर्थकर महावीर और उनकी देशना : ५७९

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