Book Title: Tirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 1
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Shantisagar Chhani Granthamala

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Page 654
________________ यह सार्वजनीन सत्य है कि यदि व्यक्तिके मुखपर तेज, छविमें सौन्दर्य, आँखों में आभा, ओठो पर मन्द मुस्कान, शरीरमें चारुता और अन्सरंगमें निश्छल प्रेम हो, तो वह सहजमें ही अन्य व्यक्तियोंको आकृष्ट कर लेता है / महावीरके बाह्य और अन्तरंग दोनों ही व्यक्तित्व अनुपम थे / उनका शारीरिक गठन, संस्थान और आकार जितना उत्तम था उतना ही वीतरागताका तेज भी दीप्ति युक्त था / वृषभके समान मांसल स्कन्ध, चक्रवर्तीके लक्षणों से युक्त पदकमल, लम्बी भुजाएँ, आकर्षक सौम्य चेहरा उनके बाह्य व्यक्तित्वको भव्यता प्रदान करते थे। साथ ही तपःसाधना, स्वावलम्बनवृत्ति, श्रमणत्वका आचार, तपोपलब्धि, संयम, सहिष्णुता, अद्भुत साहस, आत्मविश्वास आदि अन्तरंग गुण उनके आभ्यन्तर व्यक्तित्वको आलोकित करते थे। महावीर धर्मनेता, तीर्थकर, उपदेशक एवं संसारके मार्ग-दर्शक थे / जो भी उनकी शरण या छत्रच्छायामें पहुंचा, उसे ही आत्मिक शान्ति उपलब्ध हुई। निस्सन्देह वे विश्वके अद्वितीय क्रान्तिकारी, तत्वोपदेशक और जननेता थे। उनकी क्रान्ति एक क्षेत्र तक सीमित नहीं थी। उन्होंने सर्वतोमुखी क्रान्तिका शंखनाद किया, आध्यात्मिक, दर्शन, समाजव्यवस्था, धर्मानुष्ठान, तपश्चरण यहाँ तककी भाषाके क्षेत्रमें भी अपूर्व क्रान्तिको / तत्कालीन तापसोंकी तपस्याके बाह्यरूपके स्थानमें आभ्यन्तररूप प्रदान किया / पारस्परिक खण्डन-मण्डनमें निरत दार्शनिकोंको अनेकान्तवादका महामन्त्र प्रदान किया। सद्गुणों की अवमानना करने वाले जन्मगत जातिवादपर कठोर प्रहारकर गुणकर्मापारपर जातिव्यवस्थाका निरूपण किया। इन्होंने नारियोंकी खोयी हुई स्वतन्त्रता उन्हें प्रदान की। इस प्रकार महावीरका व्यक्तित्व आद्यन्त क्रान्ति, त्याग, तपस्या, संयम, अहिंसा आदिसे अनुप्राणित है / तीकर महावीर और उनको देशमा : 613

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