Book Title: Tirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 1
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Shantisagar Chhani Granthamala
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गणित नहीं है । किसीकी प्रशंसा करना और बादमें उसे गालियां देने लगना निर्दयता है। यदि दाता अपने दानका पुरस्कार चाहने लगता है, तो दान निष्फल है, इसीप्रकार कोई व्यक्ति किसी बाहरी प्रेरणासे उदारताका कोई कार्य करता है और कुछ समयके बाद किसी अप्रिय घटनाके कारण बाहरी प्रभावके वशीभूत हो विपरीत आचरण करने लगे, तो इसे भी चरित्रकी दुर्बलता माना जायगा | सच्ची दयालुता अपरिवर्तनीय है और यह बाहरी प्रभावसे अभिव्यक्त नहीं की जा सकती प्राणियोंके दःखको देखकर अन्तःकरणका आदें हो जाना दयालता है। यह जीवका स्वभाव है, इससे चरित्रके सौन्दर्यको वृद्धि होतो है और सौम्यभावको उपलब्धि होती है। सामाजिक सम्बन्धोंकी रक्षामें दयाका प्रधान स्थान है।
२. उदारता-हृदयको विशालताके साथ इसका सम्बन्ध है । जिस व्यक्तिके परित्रमें औदार्य, दया, सहानुभूति आदि गुण पाये जाते हैं, उसका जोवन आकर्षण और प्रभावयुक्त हो जाता है। चरित्रकी नोचता और भोंडापन घृणास्पद है । उदारतावश ही व्यक्ति अपने सहवर्ती जनों के प्रति आभ्यात्मिक और सामाजिक ऐक्यका अनुभव करते हैं और अपनी उपलब्धियोंका कुछ अंश समाजके मंगल हेतु अन्य सदस्यों को भी वितरित कर देते हैं।
३. भाता-इस गणद्वारा व्यक्ति निष्ठुरता और पाशविक स्वार्थपरतासे दूर रहता है । आत्मानुशासनके अभ्याससे इस गुणको प्राप्ति होती है। अपनी पाशक्कि वासनाओंका दमन और नियन्त्रण करनेसे मनुष्यके हृदय में भद्रता उत्पन्न होती है । जिस व्यक्तिमें इस भावकी निष्पसि हो जायगो, उसके स्वरमें स्पष्टता, दृढ़ता और व्यामोहहीनता आ जाती है । विपरीत ओर आपत्तिजनक परिस्थितियोंमें वह न उद्विग्न होता है और न किसीसे घृणा ही करता है ।
भद्रतामें आत्मसंयम, सहिष्णुता, विचारशीलता और परोपकारिता भी सम्मिलित हैं। इन गुणोंके सद्भावसे समाजका सम्यक् संचालन होता है तथा समाजके विवाद, कलह और विसंवाद समाप्त हो जाते हैं ।
४. अन्तर्दृष्टि-सहानुभूतिके परिणामस्वरूप समाजके पर्यवेक्षणको क्षमता अन्तर्दृष्टि है। वाद-विवादके द्वारा वस्तुका बाह्य रूप ही ज्ञात हो पाता है, पर सहानुभूति अन्तस्तल तक पहुँच जातो है । निश्छल प्रेम एक ऐसो रहस्यपूर्ण एकात्मीयता है, जिसके द्वारा व्यक्ति एक दूसरेके निकट पहुंचते हैं और एक दूसरेसे सुपरिचित होते हैं। ___ अन्तर्दष्टिप्राप्त व्यक्तिके पूर्वाग्रह छूट जाते हैं, पक्षपासको भावना मनसे निकल जाती है और समाजके अन्य सदस्योंके साथ सहयोगको भावना प्रस्फुटिस ५७६ : तीर्थकर महावीर और उनकी आचार्य परम्परा