Book Title: Tirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 1
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Shantisagar Chhani Granthamala
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इनका निर्वाण वी० नि० सं० १२ ई० पू० ५१५ में हुआ । इनके पश्चात् लोहाचार्य या सुधर्माचार्य संघनायक हुए। ये भी अहंत्, सर्वज्ञ और केवली थे । इन्होंने बारह वर्षों तक संघका संचालन किया ।
घयलाटीका में बतलाया गया है कि इन्द्रभूति गौतम गणधरने दोनों प्रकारका श्रुतान लोहाचार्यको दिया । लोहाचार्य सात प्रकारको ऋद्धियोंसे युक्त और समस्त श्रुतज्ञानके पारगामी थे। लोहाचार्य या सुधर्माचार्यने अपने उपदेशामृत द्वारा जनसमूहका अज्ञानान्धकार छिन्न किया । इनका निर्वाण विपुला बलपर वी० नि० सं० २४ ई० पू० ५०३ में हुआ ।
सुधर्माचार्यने जिस दिन निर्वाणलाभ किया, उसी दिन जम्बूस्वामीको केवलज्ञान हुआ | जम्बूस्वामी चम्पा नगरीके सेठ अद्दासके पुत्र थे और इनकी माताका नाम जिनदासा था। इनके गर्भ में आनेके पहले माताने गज, सरोवर, शालिक्षेत्र, निर्धूमाग्निशिखा और जम्बूफल ये पांच स्वप्न देखे तथा माता इन स्वप्नोंका फल ज्ञातकर अत्यधिक प्रसन्न हुई । कुमार जम्बू शैशवकाल से भविष्णु, पराक्रमी और वीर थे। इन्होंने एक मदोन्मत्त हाथीको वश किया, जिससे इनकी वीरता और साहससे प्रभावित होकर सागरदत्त सेठने अपनी कन्या पद्मश्री, कुबेरदत्तने कनकश्री, वैश्रवणदत्त सेठने विनयश्री एवं घनदत्त सेठने रूपश्रीका विवाह जम्बूके साथ कर देनेका निश्चय किया ।
जम्बकुमार एक मुनिका उपदेश सुनकर विरक्त हो गये और दीक्षा ग्रहण करनेका विचार किया । माता-पिता पुत्रको परिवारके बन्धनमें बांध रखने के उद्देश्यसे उनका विवाह कर देते हैं। चारों रूपवती पत्नियाँ उन्हें अपनी ममतामें जकड़कर रखना चाहती हैं, और विभिन्न प्रकारकी कथाएं सुनाकर उनके हृदयके विकारोंको उभाड़ती हैं, पर जम्बूकुमार हिमालय के समान अडिग रहते
। माता जिनदासी कुमारको विषयासक्त बनाने के लिए विद्युच्चोरको सहायता भी लेती है; किन्तु विजय जम्बूकुमारकी हो होती है और यह विद्युच्चोर के साथ महावीरकी धर्मसभा में दीक्षित हो जाता है ।
१. अयघवला तिलोय पण्णत्ती और इन्द्रनन्दिकृत श्रुतावतार में लोहाचार्य के स्थानपर सूनका नाम आता है। यथा-
तो तेण गोअमगोत्तेण इंदभूदिणा सोमृहुत्तेगावहारिमदुवालसंगत्येण तेणेय काळेण कयदुवालसंग गंथरयणेन गुणेहि सगसमा णस्स हुमारि यस्स गंयो बनखाणिदो । -जयघ० अ० पु० ११. २. विहरिसिहरे विसुद्धगुणि निव्वाणु पत्तु सोहम्मु मुणि— जंबूसामिचरित १०१२३.
११२ : सीर्थंकर महावीर और उनको बाचार्य-परम्परा