Book Title: Tirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 1
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Shantisagar Chhani Granthamala
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(५) पारिणामिक भाव-कमोंके उपशमादिके विना स्वभावरूपमें उत्पन्न होनेवाली परिणति । ___जिस भावके उत्पन्न होने में कर्मका उपशम निमित्त होता है, वह औपशमिक भाव है। कर्मकी अवस्था विशेषका नाम उपमाम है। जैसे कतक-निर्मली आदि
ध्यके निमित्तसे जलमें मिश्रित मैल नीचे षम आसा है और स्वच्छ जल ऊपर निकल जाता है, उसी प्रकार परिणापविरोध के कारण नियशित कालमें कर्मनिषकोंका अन्तर होकर उस कर्मका उपशम हो जाता है, जिससे उस कालके भीतर आत्माका निर्मल भाव प्रकट होता है। कर्मके उपशमसे होने के कारण इसे औपशमिक कहा जाता है।
नीचे जमे हुए मलके हिल जानेपर जिस प्रकार जल पुनः गन्दा हो जाता है, उसी प्रकार उपशमके दूर होते ही कर्मोदयके पुनः आजानेसे भावमें परिवर्तन हो जाता है।
जिस भावके होनेमें कर्मका क्षय निमित्त हो, उसे क्षायिकभाव कहते हैं। जिस प्रकार जलमेंसे मलके निकाल देनेपर जल सर्वथा स्वच्छ हो जाता है, उसी प्रकार आत्मासे लगे हुए फर्मके सर्वथा दूर हो जानेसे आत्माका निर्मलभाव प्रकट हो जाता है। अत: यह भाव कर्मके सर्वथा क्षय होनेसे क्षायिक कहलाता है।
जिस भावके होने में कर्मका क्षयोपशम निमित्त है, वह क्षायोपमिक भाव कहलाता है। जिस प्रकार जलमेंसे कुछ मलके निकल जानेपर और कुछके बने रहनेपर जलमें मलकी क्षीणाक्षीण वृत्ति पायी जाती है, जिससे जल पूरा निर्मल न होकर समल बना रहता है। इसी प्रकार आत्मासे लगे हुए कर्मके क्षयोपशमके होनेपर जो भाव प्रकट होता है, उसे क्षायोपमिक भाव कहते हैं।
कर्मोंके उदयसे होनेवाले भावको ओदयिक भाव कहते हैं।
कर्मके, उपशम, क्षय, क्षयोपशम और उदयके विना द्रव्यके परिणाममात्रसे उत्पन्न होनेवाला भाव पारिणामिक कहा जाता है। तात्पर्य यह है कि बाह्य निमित्तके बिना द्रव्यके स्वाभाविक परिणमनसे जो भाव प्रकट होता है, वह पारिणामिक कहलाता है।
संसारी अथवा मुक्त आस्माकी जितनी पर्यायें होती हैं, उन सबका अन्तभांव इन पांच भावों में ही हो जाता है । ___ संसारी जोवोंमेंसे किसीके तोन, किसोके चार और किसी जीवके पांच भाव होते हैं। तृतीय गुणस्थान तकके समस्त संसारी जीवोंके क्षायोपशमिक, ३६८ : तीर्थकर महावीर और उनकी बाचार्य-परम्परा