Book Title: Tirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 1
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Shantisagar Chhani Granthamala
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कारण है, भव नहीं । इसीसे इसे गुण प्रत्यय भी कहा जाता है। यह मनुष्य और तिर्यचोंके उत्पन्न होता है। इसके छः भेद होते हैं: - (१) अनुगामी, (२) अननुगामी, (३) वर्धमान, (४) हीयमान, (५) अवस्थित और ( ६ ) अनवस्थित । जो अवधिज्ञान अपने स्वामी जीवके साथ-साथ जाता है, उसे अनुगामो कहले हैं। इसके भी तीन भेद है: - ( १ ) क्षेत्रानुगामी, (२) भवानुगामी और (३) उभयानुगामी । जिस जीवके जिस क्षेत्रमें अवधिज्ञान उत्पन्न हुआ है, वह जीव यदि दूसरे क्षेत्रमें जाय तो उसके साथ अवधिज्ञान भी जाय, छूटे नहीं, उसे क्षेत्रानुगामो कहते हैं । जो अवधिज्ञान परलोकमें भी जोवके साथ जाता है, वह भवानुगामी एवं जो अन्य क्षेत्र और अन्य भव - जन्ममें साथ जाय, उसे उभयानुगामी कहते हैं ।
जो अवधिज्ञान उत्पत्तिस्थान के छोड़ देनेपर स्थित नहीं रहता या जन्मान्तरमें साथ नहीं जाता, वह अननुगामी है। जो अवधिज्ञान उत्पत्तिकालमें अल्प होनेपर भी परिणामोंकी विशुद्धिके कारण उत्तरोत्तर वृद्धिंगत होता है, वह वर्धमान है । संक्लेश- परिणामोंकी वृद्धिके कारण जो अवधिज्ञान उत्पत्तिकालसे लेकर उत्तरोत्तर क्षीण होता जाता है, वह हीयमान अवधिज्ञान है । जो अवधिज्ञान अपने उत्पत्तिकालसे लेकर मरणपर्यन्त एक-सा बना रहता है, न घटता है और न बढ़ता है, वह अवस्थित अवधिज्ञान है । जलतरंगोंके समान जो अवशान कभी घटता है, कभी बढ़ता है और कभी अवस्थित रहता है, वह अनवस्थित अवधिज्ञान है ।
देशावधि क्षयोपशमनिमित्तक होने के कारण मनुष्य और तिर्यञ्चोंके उत्पन्न होता है। परमावधि और सर्वावधि चरमशरीरी मुनिके ही होते हैं। देशावधि प्रतिपाती होता है अर्थात् केवलज्ञान उत्पन्न होनेके पहले छूट जाता है, पर सर्वावधि और परमावधि प्रतिपाति नहीं होते । अवधिज्ञान सुक्ष्मरूपसे एक परमाणुको विषय करता है ।
अवधिज्ञानका विषय
द्रव्यकी अपेक्षा जघन्य -- मूर्तिमान द्रव्य ।
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,, उत्कृष्ट --- परमाणु ।
क्षेत्रकी अपेक्षा जघन्य - एक अंगुलका असंख्यातत्र भाग | क्षेत्रकी अपेक्षा उत्कृष्ट असंख्य क्षेत्र - असंख्यात लोकप्रमाण | कालकी अपेक्षा जघन्य - एक आवलिका असंख्यातवाँ भाग । उत्कृष्ट — असंख्यकाल |
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भावकी अपेक्षा जघन्य - - अनन्तभव - पर्याय ।
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उत्कृष्ट — अनन्तपर्यायोंकर अनन्तभाग |
तीर्थंकर महावीर और उनकी देशना : ४३३