Book Title: Tirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 1
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Shantisagar Chhani Granthamala

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Page 599
________________ छुटकारा दिलाती है । अन्तः शोधन के लिए भी यह आवश्यक है । परिवार और समाजका कार्य सेवाभावके अभावमें नहीं चल सकता है । लूटमार, धोखाधड़ी, बेईमानी, घूसखोरो, छीना-झपटी सेवाभावके अभावमें स्वार्थवृत्तिसे उत्पन्न होती हैं। __ सेवा करनेसे व्यक्ति नीच या छोटा नहीं बनता; उसकी आत्मशक्ति प्रबल हो जाती है और वह अपनी असफलताओं, बुराइयों एवं कमजोरियों पर विजय प्राप्त करता है। सेवनीयसे सेवकको भावभूमि उन्नत मानी जाती है। जीवनके प्रत्येक विभागमें सेवाभावको आवश्यकता है। सेवा या सहयोगसे जीवनमें सामर्थ्य, क्षमता और प्रगतिका सद्भाव आता है। यह सबसे मल्यवान् वस्तू है। इसके द्वारा व्यक्ति जागरूक, कर्मरत एवं अहिंसक बनता है। परिवारके मध्य सम्पन्न होनेवाले अगणित कार्य इसीके द्वारा सम्पन्न होते हैं। पत्तव्यनिष्ठा परिवार और समाजका विकास कर्तव्यनिष्ठा द्वारा होता है । जीवनका एक क्षण या एक पल भी कर्त्तव्यरहित नहीं होना चाहिए। जागरण और शयनमें भी कत्र्तव्यनिष्ठाका भाव समाहित रहता है। यहां अप्रमाद या सावपानी हो कर्तव्यनिष्ठा है । मानव जबसे जोवनयात्रा आरम्भ करता है, तभीसे उसमें कर्तव्यभावना समाहित हो जाती है । कर्तव्य प्राप्तकार्यों को श्रद्धा और सतर्कतापूर्वक करनेको क्रिया है । यह ऐसी शक्ति है, जो प्रत्येक कार्य में हमारे साथ है, इसे सहव्यापिनी कहा जा सकता है । करणीय कार्यको ईमानदारो, भक्ति, निष्ठा, औचित्य और नियमित रूपमें पूर्ण करना कर्तव्यनिष्ठा है। जिनका जीवनक्रम व्यवस्थित होता है, वे ही अपने कर्तव्यको निष्ठाके साथ सम्पादित करते हैं । कर्तव्यनिष्ठा मानवका अनिवार्य गुण है। वस्तुतः मानवता और कर्तव्यपरायणता एक दूसरेके पूरक हैं। मानवमें बुद्धितत्त्वकी प्रधानता है और वह उसका प्रयोग करके यह समझानेकी शक्ति रखता है कि उसे कर्तव्य करना है, यह भाव अन्य प्राणियोंमें नहीं पाया जाता। अत; जीवन में सफलता प्राप्त करनेका साधन कर्तव्यनिष्ठा है । यह एक ऐसा गुण है जिसको सम्पूर्ति हो वास्तविक आनन्द और सफलता है । कर्तव्यनिष्ठा के बाधकतत्त्व निम्नलिखित हैं १. कार्य के प्रति रुचिका अभाव । २. स्वार्थवृत्ति-स्वार्थवश मनुष्य कर्तव्यका निर्वाह नहीं कर पाता। ३. प्रमाद या शिथिलता। ५५८ : तीर्षकर महावीर और उनकी आचार्य परम्परा

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