Book Title: Tirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 1
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Shantisagar Chhani Granthamala

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Page 602
________________ ६. सत्यके प्रति सम्मान | ७. प्रगतिके प्रति सम्मान | स्वतन्त्रताका सम्मान मनुष्यका दूसरे व्यक्तियोंकी स्वतन्त्रता के अधिकारको स्वीकार करनेका कर्त्तव्य उतना ही मान्य है, जितना कि जीवन-सम्बन्धी कर्तव्य आदरणीय है । यह कर्तव्य भी मनुष्यको ऐसा व्यवहार करनेके लिए निषेध करता है, जिसके द्वारा अन्य किसी व्यक्तिको स्वतन्त्रतामें बाधा पहुँचती हो । हमारा कोई अधिकार नहीं कि हम अपने व्यवहारके द्वारा किसी अन्य व्यक्तिके जीवनके विकास में बाधाएँ उत्पन्न करें। किसी भी व्यक्तिको स्वतन्त्रताको अवरुद्ध करनेका अर्थ उसके जीवन के विकास में वाधक होना है। अतः यह कर्त्तव्य जीवनसम्बन्धी कत्तंव्यसे घनिष्ठ सम्बन्ध रखता है । यदि मनुष्य अन्य व्यक्तियोंको भी अपने समान समझे, तो इस कर्त्तव्यकी कदापि अवहेलना न होगी। जो व्यक्ति सभी जीवों को अपने ही समान देखता है, वही इस कर्त्तव्यका निर्वाह कर पाता है । वास्तव में स्वतन्त्रता सम्मानका एक ऐसा आधारभूत कर्तव्य है, जिसके विना किसी भी प्रकारकी वैयक्तिक अथवा सामाजिक प्रगति सम्भव नहीं हो सकती । सामाजिक और पारिवारिक विषमताका अन्त इसी कर्त्तव्यपालन द्वारा संभव है । चरित्रके प्रति सम्मान प्रत्येक परिवार के सदस्यको अन्य सदस्य के चरित्रका सम्मान करना चरित्रके प्रति सम्मान है । जीवनसम्बन्धी कर्तव्य हिंसाका निषेधक है, तो स्वतन्त्रता सम्बन्धी कर्त्तव्य अन्य व्यक्तिोंकी स्वतन्त्रताका दमन न करनेका संकेत करता है । यह कर्त्तव्य अन्य व्यक्तियोंको क्षति पहुंचानेका निषेध तो करता ही है, साथ ही इस बात की विधि भी करता है कि हमें दूसरोंके व्यक्तित्व के विकासको प्रोत्साहित करना है । यह विधेयात्मक कर्तव्य अन्य व्यक्तियोंके चारित्रिक विकासके लिए अनुप्रणित करता है। जो व्यक्ति परिवार और समाज के समस्त सदस्योंको चारित्र - विकासका अवसर देता है, वह परिवारकी उन्नति करता है और सभी प्रकारसे जीवनको सुखी-समृद्ध बनाता है । सम्पत्तिका सम्मान सम्पत्ति सम्मानका अर्थ व्यक्तियोंके सम्पत्तिसम्बन्धी अधिकारको स्वीकृत करना । यह कर्तव्य भी एक निषेधात्मक कर्तव्य है; क्योंकि यह अन्य व्यक्तियों तीर्थंकर महावीर और उनकी देशना : ५६१ ३६

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