Book Title: Tirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 1
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Shantisagar Chhani Granthamala
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एकादश परिच्छेद
समाज व्यवस्था
लौकिक जीवनको उन्नति और समृद्धिके लिए समाजका विशिष्ट महस्व है । व्यक्ति समाजकी इकाई अवश्य है, पर वह समाज या संघके बिना रह नहीं सकता है । यतः व्यक्ति के जीवनकी अगणित समस्याएँ समाजके द्वारा ही सही रूपमें सुलझती हैं और सामाजिक जीवन में ही उसकी निष्ठा वृद्धिगत होती है ।
जीवन में जब सामाजिकताका विकास होता है, सो निजी स्वार्थ और व्यक्तिगत हितोंका बलिदान करना पड़ता है । अपने हित, अपने स्वार्थ और अपने सुख से ऊपर समाज के स्वार्थ एवं सामूहिक हितको प्रधानता दी जाती है। मानव एकदूसरेके हितों को समझकर अपने व्यवहारपर नियन्त्रण रखता है । परस्पर एकदूसरे के कार्यों में सहयोगी बन, अन्यके दुःख और पीड़ाओंमें यथोचित साहस - धैर्यं बँधाकर उनमें भाग लेनेसे सामाजिक जीवनकी प्रथम भूमिकाका निर्वाह किया जाता है। जीवनमें जन अन्तर्द्वन्द्व उपस्थित हो जाते हैं और व्यक्ति अकेला उनका समाधान नहीं कर पाता, तो उस स्थितिमें
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