Book Title: Tirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 1
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Shantisagar Chhani Granthamala
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३. व्यनिक्षेप
जो वस्तु भाविपर्यायके प्रसि अभिमुख है उसे द्रव्यनिक्षेप कहते हैं । इसके दो भेद हैं :--(१) आगम द्रव्यनिक्षेप और (२) नोआगम द्रष्यनिक्षेप ! जीवविषयक शास्त्रका ज्ञाता किन्तु उसमें अनुपयुक्त जीव आगम द्रव्यजीव है। नोआगमके सीन भेद हैं :-{१) सायकशरीर, (२) मावि और (३) सद्व्यतिरिक्त । उस ज्ञाताके भूत, भाषि और वर्तमान शरीरको सायकशरीर कहते. हैं। भाविपर्यायको भावि नोआगम द्रव्यनिक्षेप कहा जाता है। यथा भविष्यमें होनेवालेको अभी राजा कहना । तद्व्यतिरिक्तके दो भेद है:-कर्म और नोकर्म। कर्मके ज्ञानावरणादि अनेक भेद हैं और शरीरके पोषक आहारादिरूप पुद्गल द्रव्य नोकम हैं। ४. भावनिक्षेप
वस्तुको वर्तमान पर्यायको भावनिक्षेप कहते हैं । वस्तुके पर्याय-स्वरूपको भाव कहा जाता है। यथा स्वर्गके अधिपति साक्षात् इन्द्रको इन्द्र कहना भावनिक्षेप है।
अतीत और अनागत पर्याय भी स्वकालको अपेक्षा वर्तमान होनेसे भावरूप है। जो पर्याय पूर्वोत्तरकी पर्यायोंमें अनुगमन नहीं करती उसे वर्तमान कहते हैं । यही भावनिक्षेपका विषय है। द्रव्यनिक्षेपके समान भावनिक्षेपके भी वो भेद है:-(१) आगम भावनिक्षेप और (२) नोआगम भावनिक्षेप । जीवादिविषयक शास्त्रका ज्ञाता जब उसमें उपयुक्त होता है तो उसे आगमभाव कहते हैं। और जोवादि पर्यायसे युक्त जीवको नोआगमभाव कहते हैं ।।
निक्षेपोंसे बोध्य अर्थका सम्यक् बोध होता है। आरम्भके तीन निक्षेप द्रव्यार्थिकनयके निक्षेप हैं और भाव पर्यायाथिकनयका निक्षेप है ।
प्रमाण, नय ओर निक्षेप तीनों ही ज्ञानसाधन हैं। इन तीनोंके द्वारा द्रव्यपर्यायात्मक वस्तुको पूर्ण जानकारी प्राप्त होती है।
Y८४ : तीर्थकर महावीर और उनकी आचार्य-परम्परा