Book Title: Tirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 1
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Shantisagar Chhani Granthamala
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करगोल्पता मंदिर बाटा पाती है ! इस असो निम्नलिखित अतिचार हैं
१. सचित्ताहार-अमर्यादित वस्तुओंका उपयोग करना और सचित्त पदार्थोका भक्षण करना।
२. सचित्तसम्बन्धाहार-जिस अचित्त वस्तुका सचित्त वस्तुसे संबंध हो गया हो, उसका उपयोग करना ।
३. सचित्तसम्मिश्राहार-चींटी आदि क्षुद्र जन्तुओंसे मिश्रित भोजनका आहार अथवा सचित्तसे मिश्रित वस्तुका व्यवहार ।
४. अभिषवाहार-इन्द्रियों को मद उत्पन्न करनेवाली वस्तुका सेवन ।।
५. दुष्पक्वाहार-अघपके, अधिकपके, ठोक तरहसे नहीं पके हुए या जले भुने हुए भोजनका सेवन । अतिथिसंविभाग ____ जो संयमरक्षा करते हुए विहार करता है अथवा जिसके आनेकी कोई निश्चित तिथि नहीं है, वह अतिथि है। इस प्रकारके अतिथिको शुद्धचित्तसे निर्दोष विधिपूर्वक आहार देना अतिथिसंविभागवत है। इस प्रकारके अतिथियाको योग्य औषध, धर्मोपकरण, शास्त्र आदि देना इसी व्रतमें सम्मिलित है । अतिथिसंविभागवतके निम्नलिखित अतिचार है
१. सचित्तनिक्षेप-सचित्त कमलपत्र यादिपर रखकर आहारदान देना। २. सचित्तापिधान-आहारको सचित्त कमलपत्र आदिसे ढकना ।
३. परव्यपदेश-स्वयं दान न देकर दूसरेसे दिलवाना अथवा दूसरेका द्रव्य उठाकर स्वयं दे देना।
४. मात्सर्य-आदरपूर्वक दान न देना अथवा अन्य दाताओंसे ईर्ष्या करना।
५. कालातिक्रम---भिक्षाके समयको टालकर अयोग्य कालमें भोजन कराना। सल्लेखनावत
सम्यक रीतिसे काय और कषायको क्षोण करनेका नाम सल्लेखना है। जब मरणसमय निकट आ जाय तो गृहस्थको समस्त पदार्थोंसे मोह-ममता छोड़कर शनैः शनै: आहारपान भी छोड़ देना चाहिए। इस प्रकार शरीरको कुश करने के साथ ही कषायोंको भी कुश करना तथा धर्मध्यानपूर्वक मृत्युका स्वागत करना सल्लेखनायतके अन्तर्गत है। ५२४ : तीर्थकर महापौर और उनकी आचार्य-परम्परा