Book Title: Tirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 1
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Shantisagar Chhani Granthamala
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अर्थ भी ज्ञानोत्पत्तिका कारण नहीं है क्योंकि वह ज्ञानका विषय है। जो ज्ञानका विषय होता है वह ज्ञानका कारण नहीं होता है, यथा अन्धकार" । यहाँ अन्धकार ज्ञानका विषय तो है क्योंकि उसे सभी जानते हैं और सभी कहते है कि अन्धकार है पर वह ज्ञानका कारण नहीं। यदि पदार्थों को ज्ञानका कारण माना जाय तो विद्यमान पदार्थों का ही ज्ञान होगा। अनुत्पन्न और विनष्ट हुए पदार्थो का नहीं । यतः नष्ट और अनुत्पन्न पदार्थ इस समय विद्यमान नहीं हैं। वे जानने में कारण कैसे हो सकते हैं ?
इसी प्रकार आलोक भी ज्ञानोत्पत्तिका कारण नहीं है; क्योंकि आलोकका ज्ञानोत्पत्ति के साथ अन्वयव्यतिरेकसम्बन्ध नहीं है। जो कार्य जिस कारणके साथ अन्वय और व्यतिरेक नहीं रखता वह उसका कार्य नहीं होता । यथा केशमें होनेवाला उडुकका ज्ञान अर्थके साथ अन्वयव्यतिरेक नहीं रखता । रात्रिमें विचरण करनेवाले नक्तंचर मार्जार आदिको आलोकके अभाव में भी ज्ञान होता है । अतएव आलोक भी ज्ञानोत्पत्तिका हेतु नहीं है ।
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ज्ञान और अर्थ में तदुत्पत्ति सम्बन्ध नहीं है किन्तु योग्यतालक्षण सम्बन्ध है । इस सम्बन्धके कारण ही ज्ञान समकालीन अथवा भिन्नकालीन अर्थको ग्रहण करता है । यह अनुभवगम्य नहीं कि समस्त ज्ञान अपने आकारको ही जानते हैं बल्कि अपने से भिन्न पदार्थके अभिमुख होकर ही वे पदार्थों को जानते हैं। यह लौकिक प्रतीति है। लोकव्यबहारका उल्लङ्घन करनेसे पदार्थ की व्यवस्था सम्भव नहीं है। ज्ञान साकार भो नहीं है; यहाँ साकारसे अभिप्राय अर्थ आकारको धारण करने से है, क्योंकि नील आदि आकार जानमें संक्रान्त नहीं होते । ये तो जड़के धर्म हैं। जो जड़का धर्म होता है वह ज्ञानमें संक्रान्त नहीं हो सकता, यथा जड़ता । यदि ज्ञानको साकार माना जाय तो अथके साथ ज्ञानका पूरी तरह सारूप्य है अथवा एकदेशसे ? पूरी तरह से सारूप्य भाननेपर अर्थ की तरह ज्ञान भी जड़ हो जायगा और ज्ञानरूप न रहकर प्रमेयरूप हो जायगा । एकदेश सारूप्य माननेसे चैतन्य ज्ञान द्वारा अर्थका जड़ता की प्रतीति नहीं हो सकेगी, क्योंकि ज्ञान जड़ाकार नहीं है और जो जिसके आकार नहीं होता वह उसको ग्रह्य नहीं कर पाता । दूसरी बात यह है कि आकार ज्ञानसे भिन्न है अथवा अभिन्न ? यदि भिन्न है तो जान निराकार ही रहेगा और अभिन्न है तो जान और आकार में से कोई एक हो शेष रहेगा ।
१. वार्यालांकी कारणं परिच्छेद्यत्वात्तसोबात् ॥
ननु वाह्यालीका भाव विहाय तमसोऽयस्थाभावात् साकिलो दृष्टान्तः इति ? — प्रमेयरत्नमाला २०६
तीर्थंकर महावीर और उनकी देशना ४१३