Book Title: Tirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 1
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Shantisagar Chhani Granthamala
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(८) अनुभयवचनयोग अनुपयार्थक वाचक वचन | (९) औदारिककाययोग-स्थूलशरीरजन्य काययोग । (१०) औदारिकमिश्रकाययोग--औदारिकशरीर पूर्ण होनेके पहले। (११) क्रियिककाययोग-विभिन्न प्रकारको विक्रिया-रूपान्तर करने
___ की शक्ति । (१२) वैयिकभित्रकाययोग-वक्रियिकशरीरके उत्पन्न होनेकी पूर्व
स्थिति। (१३} आहारककाययोग-रसादि धातुरहित उत्कृष्ट संस्थान बोर संहनन
सहित उत्तमांग-सिरसे उत्पन्न (१४) आहारकमिश्नकाययोग-आहारफशरीर पूर्ण होनेकी पूर्व स्थिति।
(१५) कार्मणकाययोग-ज्ञानावरणादि अष्टकोका समूह । बन्ध
दो पदार्थों के विशिष्ट सम्बन्धको बन्द कहा जाता है। बन्धके दो भेद हैं:--(१) भावबन्ध और (२) द्रव्यबन्ध । जिन राग-द्वेष और मोहादि विकारो भावोसे कर्मका बन्ध होता है, उन भावोंको भावबन्ध कहते हैं और कर्मपुद्गलोंका आत्म-प्रदेशोंसे सम्बन्ध होना द्रव्यबन्ध है। द्रव्यवन्ध आत्मा और पुद्गलका सम्बन्ध है। कर्म और आत्माके एकक्षेत्रावगाही सम्बन्धको बध कहा जाता है । यह बन्ध सभी आत्माओंके नहीं होता है। जो आत्मा कषायवान है, वही आत्मा कर्मों को ग्रहण करतो है । यदि लोहेका गोला गर्म न हो, तो पानीको ग्रहण नहीं कर पाता है। पर गर्म होनेपर वह जैसे अपनी ओर पानीको खींचता है, उसी प्रकार शुद्धात्मा कर्मोको ग्रहण करने में असमर्थ है, पर जब कषायसहित आत्मा प्रवृत्ति करती है, तो वह प्रत्येक समय में निरन्तर कमोको ग्रहण करती रहती है । इस प्रकार कर्मोंको ग्रहण करके उनसे संश्लेषको प्राप्त हो जाना ही बन्ध है । बन्धके भोग और कषाय ये दो प्रधान हेतु हैं। भेदविवक्षासे मिथ्यात्व, अविरति, प्रमाद, कषाय और योग थे पांच हेतु बन्धके हैं ।
यहां यह ध्यातव्य है कि यह बन्ध संयोगपूर्वक नहीं होता। यह तो एक ऐसा मिश्रण है, जिसमें रासायनिक परिवर्तन होता है। मिलनेवाली दोनों पस्तुएं अपनी वास्तविक अवस्थाको छोड़कर एक तीसरी अवस्थाको प्राप्त हो जाती है । उदाहरणार्थ-दूध और पानीको मिश्रित अवस्थाको लिया जा सकता है। इस मिश्रित अवस्थामें न तो दूध अपनी यथार्थ अवस्थामें रहता है और न पानी ही। बल्कि दूध और पानीको मिश्रित एक तृतीय अवस्था होती है। इसी प्रकार जोष और कर्म परस्परमें सम्बन्धित होनेपर न तो जोव ही अपनी शुद्ध अवस्मामें १७१ : वीकर महावीर और उनकी काबार्य परम्परा