Book Title: Tirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 1
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Shantisagar Chhani Granthamala
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जैनमुनि बनकर मथुरा नगरीके चौरासी नामक स्थानपर अम्बकुमारने तपश्चरण किया। महावीरको शिष्यपरम्परामें जम्बूस्वामी अन्तिम केवली थे। इनका निर्वाण राजगृहके विपुलाचल पर्वतसे वी० नि० सं० ६२ ई० पु. ४६५ में हुआ' । अड़तीस वर्ष तक जम्बूस्वामो धर्मका प्रवचन करते रहे।
जम्बूस्वामीके मुक्त होने के पश्चात् कोई अनुबद्ध केवलो नहीं हुआ। इन तीनों केवलियोंके धर्मप्रवर्तन का काल ६२ वर्ष है।
इन केवलियोंके पश्चात् नन्दि, नन्दिमित्र, अपराजित, गोवद्धन और भद्रबाह ये पांच श्रुतकेवली महावीरके तीर्थमें हुए'। इन पाँचों का सम्मिलित काल सौ वर्ष है। कुछ आगम-ग्रन्थोंमें नन्दिके स्थानपर विष्णुका उल्लेख है। बहुत संभव है कि विष्णु और नन्दि भी एक ही आचार्य हों। इनका कहीं नाम विष्णु लिखा गया हो और कहीं नन्दि । पूरा नाम विष्णुनन्दि रहा होगा |
जम्बूस्वामी केवलोके पश्चात् श्रुतकेवली भद्रबाहु संघनायक हुए । ये युगप्रधानाचार्य थे तथा दिगम्बर और श्वेताम्बर दोनों ही सम्प्रदायोंमें इन्हें मान्यता प्राप्त थी । इन्हींके समयमें संघभेद हुआ। निस्सन्देह भद्रबाहुका स्थान अखण्ड जैनपरम्पराकी दृष्टिसे बहुत महत्त्वपूर्ण है। ये मौर्यसम्राट् चन्द्रगुप्तके समकालोन है। इनका जन्म स्थान पुण्ड्रवर्धन देश और गुरुका नाम गोवर्धन बताया गया है। श्री कैलाशचन्द्रजी शास्त्री ने लिखा है- "समस्त दिगम्बर जैन साहित्यमें तथा शिलालेखोंमें गोवर्द्धनको चतुर्थ श्रुतकेवली बतलाया है और उन्हें भ्रद्रबाहु श्रुतकेवलीका पूर्वज बतलाया है। तथा भद्रबाहुको पुण्ड्रवर्धन देशके कोटिमत्त नगरका निवासी बतलाया है। अतः यह निर्विवाद है कि बृहत्कथाकोषमें जिस भ्रद्रबाहुका आख्यान दिया है, वे श्रुतफेवली भद्रबाहु ही हैं और उनके समय में चन्द्रगुप्त नामका यदि कोई राजा हुआ है तो वह मौर्यसम्राट् चन्द्रगुप्त ही है । चन्द्रगुप्त नामक अन्य राजा तो बहुत समय १. विउलइरिसिहरि कम्मट्टषत्तु सिद्धालय-सासयमोक्खपत्तु ।
----जंबूसामिचरिउ,१०।२४. २. गंदी य दिमित्तो विदिओ अवराजिदो तइज्जो य ।
गोवद्धणो चउत्यो पंचमओ भदबाहु त्ति ।। पंच इमे पुरिसबरा चउबसपुष्वी जगम्मि विक्लाया । ते बारस अंगषरा तित्थे सिरिवहमाणस्स ।। पंचाण मेलिदाणं कालपमाणं हवेदि वाससदं ।
वीदम्मि पंचमए भरहे सुदकेवली पत्थि ॥-तिलोयपण्णत्ती ४।१४८२-१४८४. ३. जनसाहित्यका इतिहास, पूर्वपीठिका, प्रथम संस्करण, पृ० ३४३.
तीपंकर महावीर और उनको देशना : ३१३