Book Title: Tirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 1
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Shantisagar Chhani Granthamala
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जाती है, उस उस प्रकारका परिणमन सम्भव है । जो परमाणु शरीर अवस्थामें नोकjaणा बनकर शामिल हुए थे, वे ही परमाणु मृत्युके अनन्तर शरीरके भस्म कर देनेपर अन्य अवस्थाओं को प्राप्त हो जाते हैं। एकजातीय द्रव्य में उस द्रव्यके विशेष परिणमनोंपर बन्धन नहीं लगाया जा सकता । पुद्गल के स्कन्धों में स्वभावतः परिणमन होता रहता है, जिससे उनकी अवस्थाएं निरन्तर परिवत्तित होती रहती हैं ।
स्कन्ध और परमाणु : उत्पत्ति-कारण
स्कन्धकी उत्पत्ति तीन प्रकारसे होती है:
(१) संघात -- पृथक्-पृथक् द्रव्योंकी एकत्व प्राप्तिसे । (२) भेद -- खण्ड-खण्ड होनेसे ।
(३) भेद- संघात - एक ही साथ हुए भेद और संघात दोनोंसे ।
पृथक-पृथक द्रव्यों की एकत्व प्राप्ति परमाणुओं परमाणुओं की भी होती हैं, परमाणु और स्कन्धों की भी होती है और स्कन्धों स्कंधोंकी भी । जब दो या दो से अधिक परमाणु मिलकर स्कंध बनता है, तब परमाणुओंके संघातसे स्कन्धकी उत्पत्ति मानी जाती है। दो स्कंधोंके मिलनेसे तृतीय स्कंधका निर्माण होता है, तो स्कंध संघातसे स्कंधकी उत्पत्ति मानी जाती है ।
बड़े स्कंध टूटने से छोटे-छोटे दो या दो से अधिक स्कंध उत्पन्न होते हैं, ये भेदजन्य स्कन्ध कहलाते हैं । यथा- पत्थर के तोड़नेपर दो या दो से अधिक टुकड़े होते हैं । इस प्रकारके स्कन्धोंकी उत्पत्ति भेदसे होती है । भेदजन्य स्कंध कसे लेकर अनन्ताणुक तक हो सकते हैं ।
भी
जब किसी स्कन्धके टूटनेपर टूटे हुए अवयवके साथ उसी समय अन्य स्कन्ध मिलकर नया स्कन्ध बनता है, तब वह स्कन्ध भेदसंघातजन्य कहलाता है । भेदसंघातजन्य स्कन्ध भी द्वषणुक से अनन्ताणुक तक संभव हैं । अचाक्षुष स्कन्धभेद और संघातसे चाक्षुष हो जाते हैं ।
अणु उत्पत्ति
अणुकी उत्पत्ति केवल भेदसे होती है, इसका कारण यह है कि अणु पुद्गल द्रव्यकी स्वाभाविक अवस्था है, अतः इसकी उत्पत्ति संघात - - मिलनसे नहीं, भेद - टूटने से ही संभव है ।
परमाणु : गतिशीलता
पुद्गलपरमाणु स्वभावतः क्रियाशील है । इसकी गति तीव्र भन्द एवं तीर्थंकर महावीर और उनकी देशना : ३५७