Book Title: Tirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 1
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Shantisagar Chhani Granthamala
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इसी प्रकार उत्पाद और ध्रौव्यके विना कैवल व्यय माननेपर व्ययके कारण
लभाव होनेसे मिट्टी के पिणका विनाश नहीं हो सकेगा । यदि उक्त स्थितिमें विनाश होगा तो सत्के उच्छेदका भी प्रसंग आएमा ।
मिटीके पिण्डका विनाश होनेपर सभी पदार्थोका विनाश नहीं होगा और सत्का उच्छेद होनेसे चैतन्यादिका भी उच्छेद हो जायगा । उत्पाद और व्ययके विना केवल स्थिति माननेपर व्यतिरेक सहित स्थितिरूप अन्वयका अभाव होनेसे मिट्टीकी स्थिति ही नहीं रहेगी अथवा केवल क्षणिकत्वको प्राप्त हो जायगा। मिट्रोकी स्थिति नहीं होनेपर सभी पदार्थों की स्थिति नहीं होगी । क्षणिकनित्यता. में बौद्धसम्मत चित्तक्षण भी नित्य हो जायंगे। अत्तः पूर्व-पूर्व पर्यायोंके विनाश, उत्तरोत्तर पर्यायोंके उत्पाद तथा अन्वयरूप की । स्थितिसे अविनाभूत लक्षण्य ही ज्ञेय-पदार्थका स्वरूप है । यही सत् है और सत् ही द्रव्य है।
उक्त विलक्षणात्मक पदार्थ या द्रव्यके माननेसे वैशेषिक आदि अन्य दर्शनोंके समान गुण, कर्म, सामान्य, विशेष, समवाय और अभाव नामक पृथक् पदार्थ माननेकी आवश्यकता नहीं है, ये सब द्रव्यको अवस्थाएं हैं।
तीर्थकर महावीरने अपने इस श्रिपदी मातृका-वाक्य द्वारा वस्तुके एकान्तरूप नित्यत्व और अनित्यत्व-क्षणिकत्वको समीक्षा की। उन्होंने उद्घोषित किया कि इस विश्वमें न कोई वस्तु सर्वथा नित्य है और कोई सर्वथा क्षणिक ही । दोनों समस्वभाव हैं। जैसे आकाश द्रव्यरूपसे नित्य है, उसी प्रकार दीपक भो नित्य है और जिस प्रकार पर्यायरूपसे दीपक क्षणिक है, उसी प्रकार आकाश भी -- - ... .. .-. . . . ... १. यदि पुनर्नेदमेवमिध्येत तदान्य: सर्गोऽन्यः संहारः अन्या स्थितिरित्यायाति । तथा
सति हि केवलं सगं मुगयमाणस्य कुम्भस्योत्पादन कारणाभावादभवनिरेव भवेत्, असदुत्पाद एव वा। तत्र कुम्भस्याभवनौ सर्वेषामेव भावानामभवनिरव भवेत्। असदुत्पादे वा न्योमप्रसवादीनामप्युत्पादः स्यात् । तथा केवलं संहारमारभमाणस्य भूपिण्डस्य संहारकारणाभाबादसहरणिरव भवेत्, सदुच्छेद एव वा। तत्र मृत्पिण्डस्यासहरणी सर्वेषामेव भावानामसंहरणिरेव भवेत्। सदुच्छेदे वा संदादोनामप्युच्छेदः स्यात् । तथा केवलो स्थितिम्पगच्छन्त्या मृत्तिकाया व्यतिरेकाक्रान्तस्थिस्यन्वयाभावादस्थानिरव भवेत्, क्षणिनित्यत्वमेव वा। तत्र मुक्तिकाया अस्थानो सर्वेषामेव भावानामस्थानिरव भवेत् । क्षणिकनित्यत्वे का चित्तक्षणानामपि नित्यत्वं स्यात् । तत उत्तरोत्तरध्यतिरेकाणां सर्गण पूर्वपूर्वध्यतिरेकाणां संहारेणान्वयस्थावस्थानेनादिनाभूतमुयोतमाननिर्विघ्नत्रलक्षण्यलाग्छनं द्रव्यमवश्यमनुमन्तव्यम् ।-प्रवचनसार, गाथा १००की
अमृतवन्द्र-टीका. ३२० : तीर्थकर महावीर और उनकी भाचार्य-परम्परा