Book Title: Tirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 1
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Shantisagar Chhani Granthamala
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५. सूक्ष्म-जो स्कन्ध सूक्ष्म होनेके कारण इन्द्रियों के द्वारा ग्रहण न किये जा सकते हों, वे कार्मण-वर्गणाएँ आदि सूक्ष्म स्कन्ध हैं ।
६. सूक्ष्म-सूक्ष्म-कार्माणवर्गणासे भी छोटे तथणुक स्कन्ध तक सूक्ष्म-सूक्ष्म
परमाण अत्यन्त सक्षम है, वह अविभागी है, शब्दका कारण होकर भी स्वयं अशब्द है और शाश्वत होकर भी उत्पाद और व्यय युक है। परमाणुमें भी त्रयात्मकता पायी जाती है । पुगलपर्याय
शब्द, बन्ध, सूक्ष्मता, स्थूलता, संस्थान, भेद, अन्धकार, छाया, प्रकाश, उद्योत, और गर्मी आदि पुद्गलद्रव्यकी पर्यायें हैं।
शब्द पुद्गलहारा ग्रहण किया जाता है, पुद्गलसे धारण किया जाता है, पुद्गलसे रुकता है, पुद्गलोंको रोकता है और गैद्गलिक वातावरणमें अनुकम्पन उत्पन्न करता है, अतः शब्द पोद्गलिक है। स्कन्धोंके परस्पर संयोग, संघर्षण और विभागसे शब्द उत्सन्न होता है। जिह्वा और तालु आदिके संयोगसे नाना प्रकारके भाषात्मक प्रायोगिक शब्द उत्पन्न होते हैं। शब्दके उत्पादक, उपादानकारण तथा स्थूल निमित्तकारण दोनों हो पौद्गलिक हैं । __ दो स्कन्धोंके संघर्षसे शब्द उत्पन्न होता है, वह आस-पासके स्कन्धोंको अपनी शक्तिके अनुसार शब्दायमान कर देता है, अर्थात संघर्ष के निमित्तसे उन स्कन्धोंमें भी शब्दपर्याय उत्पन्न हो जाती है। शब्द बीची-तरंग न्यायसे श्रोताके कर्णप्रदेशको प्राप्त होता है।
शब्द केवल शक्ति नहीं है, अपितु शक्तिमान् पुद्गलस्कन्ध है, जो वायुस्कन्धके द्वारा देशान्तरको जाता हआ आस-पासके वातावरणको झनझनाता है। शब्दके पौद्गलिकत्वकी सिद्धि अनुभव द्वारा भी होती है। निश्छिद्र बन्द कमरे में आवाज करनेपर वह वहीं गुंजती रहती है, बाहर नहीं निकलती। यन्त्रों द्वारा शब्दतरंगोंको देखा जा सकता है। अतः शब्द अमूर्त आकाशका गुण न होकर पौद्गलिक है । १. नादरवादर बादर बादरसुमं च सुहमयूलं च । सुहमं च सुहमसुहमं च धरादियं होदि छन्भेयं ।
--जीवकाण्ड, गाथा ६०२. २. शब्दबन्धसोक्षायसंस्थान दतमाछायातपोद्योतयन्तश्च ।
-तस्वार्थसूत्र, ५।२४. ३५२ : तीर्थकर महावीर और उनकी आधार्म परम्परा