Book Title: Tirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 1
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Shantisagar Chhani Granthamala
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समणुद्देस एतदवोच 'अत्थि खो इदं आवुसो चुन्द, कथा पामन्तं भगवन्तं दरसनाय 1 अयाम आसो चुन्द, येन भगवा तेनुपसङ्कमिस्साम । उपसङ्घमित्वा एतमत्थं भगवतो आरोचेस्साम' ति । 'एव भन्ते' ति खो चुन्दो रामणुद्देो मतो स
वे
अर्थात् एक बार भगवान बुद्ध शाक्य देश के सामगाम में विहार करते थे । निगंठ नातपुत्रकी कुछ समय पर्व ही पावामें मृत्यु हुई थी। उनकी मृत्युके अनन्तर ही निगंठों में फुट हो गयो, दो पक्ष हो गये, कलह करते हुए एक दूसरेको मुखरूपी शक्ति से छेदते विहर रहे थे- 'तू इस धर्म - विनयको नहीं जानता, में इस धर्म - विनयको जानता हूँ | तू भला धर्म विनयको क्या जानेगा ? तू मिय्यारूद है, में सत्यारूढ हूँ ।'
इस
निगण्ठ नातपुत्रके श्वेतवस्त्रधारी गृहस्थ शिष्य भी नातपुत्रीय निगंठों में वैसे ही विरक्त चित्त हैं, जैसे कि वे नातपुत्रके दुराख्यात (अस्पष्ट ), दुष्प्रवेदित (अज्ञात), अनेर्याणिक (पार न लगानेवाले), अनुपशम संवर्तनिक ( न शान्ति गामी), असम्यक सम्बुद्ध प्रवेदित ( किसी बुद्ध से न जाने गये), प्रतिष्ठा (आधार) रहित, भिन्नस्तूप, आश्रमरहित धर्मविनय में थे ।
चुन्दसमणुद्देस पावा वर्षावास समाप्त कर सामगान में आयुष्मान आनन्दके पास आये और उन्हें निगष्ठ नातपुत्रको मृत्यु तथा निगठों में हो रहे विग्रहकी सूचना दी। आयुष्मान् आनन्द - "आवुस चुन्द ! भगवान्के दर्शनके लिए यह बात भेंट रूप है । आओ-आबुस चुन्द ! जहाँ भगवान् है, वहीं चलें । चलकर यह बात भगवान्को कहें - अच्छा भन्ते ! चुन्द समजुद्देसने कहकर आयुष्मान् आनन्दका समर्थन किया ।
उपालि-संवाद में बताया गया है कि नातपुत्र नालन्दावासी होनेपर भी पावामें कालगत हुए । उन्होंने सत्यलाभी उपालि गृहपत्तिको दस गाथाओंसे भाषित बुद्धके गुणों को सुनकर उष्ण रक्त उगल दिया । अस्वस्थ अवस्थामें ही उन्हें पावा ले गये और वहीं कालगत हुए ।
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इन सन्दर्भों के अध्ययनसे निम्नाति तथ्य प्रसूत होते हैं १. तीर्थंकर महावीरका निर्वाण पायायें हुआ 1
२. उनकी मृत्युके समय ही जैनसंघमें फूट पड़ गयी । ३. इसी समय श्वेताम्बर और दिगम्बर भेद प्रकट हुए ।
१. मज्झिमनिकाय, सामगाम सुत्तन्त ३१९१४.
२. मज्झिमनिकाय अट्टकथा, सामगाम सुत्तवण्णना, खण्ड ४, ५० ३४.
तोर्थंकर महावीर कौर उनकी देशना : ३०७