Book Title: Tirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 1
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Shantisagar Chhani Granthamala
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द्वितीय घटना महावीरके निर्वाणकी है। महावीर चम्पासे विहारकर मध्यमा पावा या अपापा पधारे। इस वर्षका वर्षावास हस्तिपालकी रज्जुकसमामें ग्रहण किया । चातुर्मासमें दर्शनोंके लिए आये हुए राजा पुष्यपालने भगवान् से दीक्षा ली । कार्तिक अमावस्या के प्रातःकाल अपने जीवनकी समाप्ति निकट समझकर अन्तिम उपदेशकी अखण्ड धारा चालू रखी। जो अमावस्याकी पिछली रात तक चलती रही। गौतम गणधर उस समय महावीरको आशासे निकटवर्ती ग्राम में देवशर्मा ब्राह्मणको उपदेश करनेके लिए गये हुए थे । जब वे लौटकर आये, तो उन्हें देवताओंसे ज्ञात हुआ कि भगवान् कालगत हो गये । इन्द्रभूति गौतमको तत्क्षण केवलज्ञान प्राप्त हो गया ।
श्वेताम्बर वाङ्मयके आधारपर प्रस्तुत किये गये उपर्युक्त विवेचनसे मध्यमा पावाकी भौगोलिक स्थिति स्पष्ट हो जाती है। पहली घटना चतुविष संघस्थापनकी है । मध्यमा पावा और जृम्भक ग्राम में इतना अन्तर होना चाहिए, जिससे एक दिन रात में जृम्भक ग्रामसे मध्यमा पावा पहुँचा जा सके। यह आंतर अधिक-से-अधिक बारह योजन दूरीका हो सकता है। हम पूर्वमें तीर्थंकर महावीरके केवलज्ञान-स्थान जम्भिय ग्रामको अवस्थितिका निर्देश कर चुके हैं। यह ऋजुकूला नदीके तटपर स्थित जमुई गाँव है, जो वर्तमान मुंगेरले पचास मील दक्षिणको दुरीपर स्थित हैं । यहाँसे राजगृहकी दूरी तीस मोल या पंद्रह कोस है । पाचापुर और राजगृहकी दूरी भी अधिक-से-अधिक पच्चीस मोल है । इस प्रकार जमुई से पावापुरकी दूरी दस योजनसे अधिक नहीं है । यदि सठि - आँव वाली पावाको मध्यमा पावा माना जाय, तो जम्भिय गाँबसे यह पावा कम-से-कम सौ - डेढ़ सौ मीलकी दूरीपर स्थित है । इतनी दूरीको वैशाख शुक्ला दशमीके अपराह्न कालसे वैशाख शुक्ला एकादशीके पूर्वाह्न काल तक तय करना सम्भव नहीं है ।
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दूसरी विचारणीय बात यह है कि श्वे० सूत्र - प्रन्थोंमें बताया गया है कि तीर्थंकर महावीर चम्पा नगरीमें चातुर्मास पूर्णकर जम्भीय गाँव में पहुंचे । वहाँसे मेंढ़ीय होते हुए छम्माणि गये । यहाँ एक ग्वालेने महावीरके कानों में काठके कोले ठोंककर उपसर्ग दिया था। छम्माणिसे महाबोर मध्यमा पावा माये । महावीरके इस बिहार- कमका भौगोलिक अध्ययन करनेसे दो तथ्य प्रसूत होते हैं:
( १ ) छम्माणि ग्रामकी स्थिति चम्पा ओर मध्यमा पाचाके मध्य मार्गपर स्थित है | मेढ़ीय ग्रामकी दो स्थितियां मानी जाती हैं। एक स्थिति तो राजगृह और चम्पाके मध्यकी और दूसरी श्रावस्ती और कौशीम्बीके मध्यकी है। यदि महावीरने चम्पासे चलकर श्रावस्ती और कौशाम्बीके मध्यवाले मेढ़ीय ग्राम में धर्मसभा की हो, तो कोई आश्चर्य नहीं है। कहा जाता है कि गोशा
तीर्थंकर महावीर और उनकी देशना : २९९