Book Title: Tirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 1
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Shantisagar Chhani Granthamala
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वैशालीसे पावापुरमें सम्मिलित हुए होंगे। यदि सठियांव वाली पावामें सम्मिलित होते तो दूरी इसनी अधिक हो जाती कि उनका निर्वाणोत्सबमें सम्मिलित होना असम्भव था।
२. हस्तिपाल पावापुरका शासक था और यह राजा सिंहका पुत्र था। यदि इसे हम मल्ल गणके अन्तर्गत मान लें तो भी अनुचित नहीं है : यस: चेटककी सहायता नवमलोंने की थी और यह भी उसी मल्लगणके अन्तगत था।
३. बुद्धने जिस पावामें भोजन ग्रहण किया था और जो कुशीनगरके पास सठियांवके रूपमें भान्य है, उसका नृपति हस्तिमल्ल नहीं है। इस्तिमल्लका किसी भी बौद्ध ग्रन्थमें उल्लेख नहीं आता। जैन ग्रन्थोंमें हस्तिमल्ल महावीरके प्रपम समवशरणमें भी उपस्थित होता है, जिसका संयोजन पावापुरी (नालन्दाके निकटवर्ती) में हुआ था। निर्वाण लाभ करनेके समय महावीरने अपना अन्तिम चातुर्मास इसी पावामें हस्तिमल्लके रज्जुगगहमें किया था। अत: बेन साहित्यके प्रचुर प्रमाणोंके आधारपर वर्तमान पावापुरी ही तीर्थीकर महावीरकी निर्वाणभूमि है। __ जो यह प्रश्न उठाया जाता है कि मगधवासी होनेपर भी अजातशत्र मगध जनपदमें स्थित मध्यम पावामें महावीरके निर्वाणोत्सवमें क्यों सम्मिलित नहीं हुआ? इसका समाधान सोचा और स्पष्ट है। तीर्थकर महावीरके निर्चापोत्सवके अवसरपर श्रेणिक जीवित था। अतएव उसीने मगधका प्रतिनिधित्व किया। हरिवंशपुराणमें स्पष्ट उल्लेख है कि श्रेणिक इस उत्सव में सम्मिलित हुआ। इस पुराणकी रचना शक-संवत् ७०५ वि० सं० ८४० ई० सन् ७८३में हुई है। हरिषेणरचित बृहत्कथाकाशसे भी उक्त तथ्य पुष्ट होता है। इस ग्रन्थमें आयी हुई श्रेणिक कथामै बताया गया है कि श्रेणिककी मृत्यु महावीरके निर्वाणके पश्चात् हई। श्रेणिक निर्वाण-प्राप्तिके कई वर्ष पश्चात परलोकबासी हुआ । श्रेणिक-चरितमें महावीरके निर्वाणके पूर्व श्रेणिकके देहायसानको सूचना दी गयी है । पर ये दोनों तथ्य पूर्वोत्तरवर्ती होने के कारण विरोधी नहीं हैं । श्रेणिकचरितको रचना पन्द्रहवीं शताब्दोकी है । अत: उसको अपेक्षा हरिवंशपुराण और हरिषेण-कथाका कथन पूर्ववर्ती होनेसे अधिक प्रामाणिक है।
१. तथैव ष श्रेणिकपूर्वभूभुजः प्रकृत्य कल्याणमहं सहप्रजाः ।
प्रजम्मु रिन्द्राश्च सुरैर्यथार्थ प्रयापमाना जिनघोषिणिनः ।।-ह० ६६।२१. २. बृहत्कथाकोश-हरिषेणकृत, प्रेणिककथा, कथा ५५.
३०२ : तीर्थकर महावीर और उनकी आचार्य-परम्परा