Book Title: Tirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 1
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Shantisagar Chhani Granthamala
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मिली तथा मेरे मनमें संसारके प्रति अरुचि उत्पन्न हो गयी । फलतः सर्वारम्भपरिग्रहका त्यागकर में भी मुनि बन गया ।" । ____ कनकनीको मेरा मुनि बनना अच्छा न लगा । अतः वह क्रोधावेशमें मुझे गालियाँ देने लगी तथा उसकी स्थिति उन्मत्त जैसी हो गयी और कुछ ही दिनों में उसका शरीर छूट गया । कनकधी कुभावनाके प्रभावसे व्यन्तरी हुई। उसने विभंगावधिसे मेरे सम्बन्धमें जानकारी प्राप्त की और प्रतिशोधके रूपमें उसने मेरी तपस्थामें विघ्न करना आरम्भ किया। मैं जब-चर्याके लिए निकलता वह मेरी इन्द्रिय-वृद्धि कर देती, जिससे अन्तरायके कारण मैं विना आहार लिए ही लौट जाता। इस प्रकार अन्तराय होनेसे मैंने द्विमासोपवास ग्रहण किया । जब में चर्याके लिए राजगृहमें आया, तो कनकनीके जीव उस व्यन्तरोने पुनः अन्तराय उपस्थित करनेका प्रयास किया, किन्तु तुमने उस उपसर्गको जानकारी मुझे नहीं होने दी। मैं तुम्हारे द्वारा शुद्धरूपसे दिये गये आहारको ग्रहण कर यहाँ आया और मुझे उत्कृष्ट ध्यानकी प्राप्ति हुई, जिसके फलस्वरूप केवलज्ञान मिला।" हुया आस्मोक्य ___चेलनाने उपगृहन अंगका पालनकर अपने सम्यक्त्वको दृढ़ किया | चेटककी पुत्री ज्येष्ठा आर्यिका बनकर धर्मसाधना कर रही थी और इनके पति सात्यकि भी मुनिपद ग्रहण कर आत्म-साधना कर रहे थे | चारित्रमोहोदयसे ये दोनों तपसे भ्रष्ट हए । चेलनाने इनका स्थितिकरण कर इन्हें पुनः धर्माराधनमें प्रवृत्त किया और तीर्थकर महावीरके समवशरणमें इन्हें प्रविष्ट कराया। प्रायश्चित्त कर ये दोनों आर्यिका और मुनि व्रत पालन करने में दृढ़ हुए।
चेलना आर्यिका चन्दनाकी वन्दनाके लिए गयो। चन्दनाके धर्मोपदेशका उसपर जादू जेसा प्रभाव पड़ा । फलतः उसके परिणाम भो विरक्तसे आप्लावित हो गये । श्रेणिकके अभावके कारण उसकामन भी सांसारिक कार्यो में नहीं लग रहा था । उसे संसारकी असारताकी अनुभूति हो गयी। फलतः चेलनाने भी चन्दनासे आर्यिका-दीक्षा धारण कर ली। __ चेलना तीर्थंकर महावीरके संघमें रहकर आत्म-साधना करने लगी। वह स्त्री-पर्यायका छेदकर पुरुष-पर्याय द्वारा कैवल्य प्राप्तिके लिए सोष्ट थी। तीर्थंकर महावीरके दर्शन-वन्दनसे चेलना और ज्येष्ठाका कल्याण हुआ। अन्य अनेक राजाओंद्वारा महावीरकी भक्तिचन्दना
तीर्थकर महाबोरकी वन्दना अनेक राजा-महाराजाओंने की और उनके २३२ : तीर्थकर महावीर और उनका प्राचार्य परम्परा