Book Title: Tirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 1
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Shantisagar Chhani Granthamala
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स्वस्थ मन होने पर राजा दधिवाहन तो चम्पा लौट आये, पर हाथी रानी - को एक निर्जन जंगलमें लेकर प्रविष्ट हुआ । सरोवर में अवसर देखकर रानी किसी प्रकार हाथोपरसे उत्तर आयी और तैरकर किनारे आ गयी । रानी उस वनको भयंकरता देखकर विलाप करने लगी। पर अपनी असहाय अवस्था जानकर साहस बाँध एक ओर चल पड़ी। कुछ दूर जानेपर उसे एक तापस मिला । रानीने तापसको प्रणाम किया और उसके पूछने पर अपना परिचय दिया । तापसने रानीको आश्वासन देते हुए कहा- "मैं चेटकका सगोत्री हूँ । अतः अब चिन्ता करने की आवश्यकता नहीं ।" उस त सने बनके फल खिलाकर रानीकी क्षुषा शान्त की और उसे कुछ दूर जाकर विका मार्ग दिखला दिया और कहने लगा- " पुत्री ! हल चली भूमिपर में नहीं चल सकता । अतः तुम अकेले सीधी चली जाओ । आगे दन्तपुर नामक नगर है बहाँ दन्तवक्र नामक राजा है। वहांसे किसी के साथ चम्पा चली जाना ।"
पद्मावती रानी दन्तपुर पहुँची और साध्वियोंके उपाश्रयकी तलाश करती हुई भ्रमण करने लगी। रानी साध्वियोंके उपदेशसे विरक्त हुई और उसने क्षुल्लिका - दीक्षा ग्रहण कर ली। रानीका गर्भं वृद्धिंगत होने लगा । उसने प्रमुख साध्वीको अपना समाचार कह सुनाया । जब प्रसव हुआ, तो नवजात शिशुको रत्नकम्बल में लपेटकर पिताकी नाम-मुद्राके साथ श्मशानमें छोड़ दिया | बच्चेकी रक्षा के लिये रानी इमशान में ही एक जगह छिपकर बैठ गयी। इतनेमें श्मशानका मालिक चाण्डाल आया, उसने बच्चेको उठा लिया और अपनी पत्नीको पालन-पोषण करने के लिये सौंप दिया। रानीने छिपकर चाण्डालका घर देख लिया | रानीने उपाश्रय में आकर साध्वियों से कहा- "मृत पुत्र हुआ था, उसे मैंने छोड़ दिया ।" रानी पुत्रस्नेहके कारण चाण्डाल के घर जाती और भिक्षा में मिली अच्छी वस्तुओंको पुत्रको देती ।
जब बालक बड़ा हुआ, तो अपने समवयस्क बच्चोंमें राजा बनता । एक दिन वह श्मशान में था कि दो साधु चले जा रहे थे। एक साधुने एक बाँसको दिखाकर कहा कि चार अंगुल बड़ा हो जानेपर जो इसे धारण करेगा,
वह
राजा बनेगा |
एक ब्राह्मण भी इस कथनको सुन रहा था। उसने वह बाँस जमीनसे नीचे चार अंगुल तक खोदकर काट लिया। जब चांडालके घर में पले-पुसे लड़केने ब्राह्मणको बाँस काटते देखा तो वह उससे झगड़ पड़ा और अन्तमें उसे राज्य मिलने पर एक गाँव का वचन देकर वह बाँस ले लिया । ब्राह्मणने बांस तो दे दिया, पर षड्यन्त्रकर उस चांडाल परिवारको मारने का प्रयास करने लगा ।
२४८ : तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य परम्परा